विश्व संस्कृत पुस्तक मेले में विज्ञान, महिला एंव शिक्षा की गोष्ठियों का आयोजन


आज दिनांक 8.1.11 को बेंगलुरु में आयोजित विश्व संस्कृत पुस्तक मेले के अन्तर्गत विभिन्न विषयों पर गोष्ठियों का आयोजन किया गया, जिनमें बड़ी संख्या में देशभर से आये विशेषज्ञों ने अपने विचार रखे। इन गोष्ठियों में सर्वप्रथम महिला गोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें ‘संस्कृत और संस्कृति में महिलाओं के योगदान और उत्तरदायित्व’ इस विषय पर विभिन्न विदुषियों ने अपने विचार रखे। इनमें प्रमुख थीं उत्तराखण्ड के संस्कृत विश्वविद्यालय की उपकुलपति डा. सुधा रानी पाण्डेय, पुणे से डा. सरोजा भाटे, प्रख्यात व्याकरणविद् डा. पुष्पा दीक्षित, राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन की निदेशिका डा. दीप्ति त्रिपाठी, मध्यप्रदेश की माध्यमिकशिक्षामंत्री श्रीमती अर्चना चिटणीस। गोष्ठी में प्रमुख रूप से सभी प्रतिनिधियों ने समाज में संस्कृत भाषा के महत्व और उसकी आवश्यकता पर बल देते हुए संस्कृत को एक सर्वांगीण और जनमानस की भाषा बनाने पर जोर दिया। डा. सुधारानी पाण्डे के अनुसार वैदिक युग से ही संस्कृत की सेवा में महिलाएं निरत रही हैं जिसके लिए उन्होंने विभिन्न वैदिक सूक्तों का उदाहरण दिया। डा. पुष्पा दीक्षित ने कहा ‘संस्कृत शिक्षा, विशेषकर व्याकरण के ज्ञान लिये, पाणिनीय विज्ञान को अपनाएं। क्यूंकि इस पद्धति से अत्यन्त अल्प समय में संस्कृत के व्याकरण को समझा जा सकता है।’ मध्यप्रदेश की माध्यमिकशिक्षामंत्री श्रीमती अर्चना चिटणीस ने अपने सीमित संस्कृत ज्ञान पर टिप्पणी करते हुए घोषणा की कि वे वापस जा कर विधिवत् संस्कृत शिक्षा अवश्य लेगीं। ‘समायिक विज्ञान में संस्कृत का महत्व’ विषय पर एक अन्य महत्वपूर्ण गोष्ठी में कर्णाटक राज्य के सांस्कृतिक निदेशक श्री मनु बलिगार, प्रख्यात वैज्ञानिक श्री रोद्धम नरसिंह, अर्थशास्त्राी श्री एस. गुरूमूर्ति, आइ.आइ.एम. बेंगलुरु के प्रो. बी. महादेवन, विकिपीडिया विशेषज्ञ श्री अरुण रामरत्नम ने अपने विचार प्रस्तुत किए। सामयिक विज्ञान में संस्कृत के महत्व पर बोलते हुए प्रख्यात वैज्ञानिक श्री रोद्धम नरसिंह ने चरक संहिता और अन्य विभिन्न उदाहरण देकर बताया कि जिन रोगों के निदान के लिए हम जटिल आधुनिक तकनीकों का सहारा लेते हैं, प्राचीन ऋषियों के पास उसके अत्यन्त सरल और कारगर समाधान थे। श्री गुरुमूर्ति ने देश के आर्थिक विकास में संस्कृत के सूत्रों के महत्व को उजागर किया। साथ ही उन्होंने स्वीकार किया कि संस्कृत को मृतभाषा मानने की परंपरा निराधार है। इस अवसर पर उन्होंने जोर देकर कहा कि ‘भारत का आर्थिक विकास केवल वैदिक धर्म के आधार पर ही संभव है।’ डा. महादेवन ने संस्कृत को गुरुकुलों की चारदिवारी से बाहर निकाल कर विभिन्न क्षेत्रों में फैलाने की आवश्यकता पर बल देते हुए भगवद्गीता के कई उदाहरण प्रस्तुत किए। विकीपीडिया विशेषज्ञ श्री अरुण रामरत्नम ने अन्तर्राष्ट्रीय सूचनातंत्रा में बड़े पैमाने पर संस्कृत भाषा में कार्य करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि विश्व में विकीपिडिया में उपलब्ध 250 भाषाओं में
संस्कृत का स्थान 13 वां है। संस्कृत शिक्षा में नूतन दृष्टिकोण विषय पर आयोजित एक अन्य गोष्ठी में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के उपकुलपति प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी, पूर्व कुलपति श्री रामकरण शर्मा, उत्तराखण्ड संस्कृत विश्वविद्यालय की कुलपति डा. सुधारानी पाण्डेय, डा. कलानाथ शास्त्री तथा राजस्थान के शिक्षामंत्राी श्री बृजकिशोर शर्मा ने भाग लिया। गोष्ठी में सभी विद्वानों ने संस्कृत के वैश्विक आधार और संस्कृत की पठनपाठन प्रणाली में नये प्रयोगों पर अपने विचार प्रकट किए। सभी ने एकमत से संस्कृत शिक्षण की पुरातन पद्धति को अपनाते हुए नई तकनीक और विधियों को भी अपनाने पर जोर दिया। सभी का मानना था कि शास्त्रों की रक्षा के साथ-साथ प्राथमिक स्तर से ही संस्कृत के शिक्षण का प्रावधान होना चाहिए। इसी बीच प्रत्येक गोष्ठी में विभिन्न प्रकाशकों के द्वारा सम्बन्धित विषयों पर प्रकाशित 80 से अधिक पुस्तकों का विमोचन किया गया।

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