स्वार्थ से हुआ देश का विभाजन
कोलकाता | राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के सर संघ चालक मोहन भागवत ने रविवार को कहा कि 1947 में परिवर्तित हुए दृष्टिकोण ने ही देश के विभाजन का मार्ग प्रशस्त किया। 1947 के पहले हमारी दृष्टि ऊंची थी ,लेकिन बाद में तत्कालीन नेताओं के राजनीतिक स्वार्थ से इसमें परिवर्तन हुआ और देश की व्याख्या भूखंड के रूप में की जाने लगी। यह दृष्टिकोण राजनीतिक स्वार्थ से पे्ररित था और इसमें सौदे बाजी की भावना थी। भागवत आज डा.श्यामा प्रसाद मुखर्जी की 109वीं जयंती पर डा.एसपी मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन की ओर से आयोजित सेमिनार विजन 2020 को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि देश के बंटवारे के समय लाखों देश प्रेमियों को क्षोभ हुआ ,लेकिन वे विवश थे। देश किसी भूमि का टुकड़ा नहीं होता जिसका क्रय-विक्रय किया जा सके या जिसे बांटा जाए। भारत की परंपरागत यही दृष्टि रही है और इसी लिए देश को मातृभूमि और भारत माता के रूप में संबोधित किया जाता रहा हैं। उन्होंने कहा कि 1947 में राजनीतिक स्वार्थ के कारण देश विभाजन हुआ। भागवत ने चेतावनी दी कि तुष्टीकरण की नीति के चलते देश को आगे भी बंटवारे का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि हमारा किसी समुदाय विशेष से कोई द्वेष या प्रेम नहीं है, लेकिन हम चाहते हैं कि सभी के साथ समान व्यवहार हो। इस मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी ने देश के लोकतंत्र के मंदिर संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु को फांसी नहीं देने के मुद्दे पर माफी मुझे नहीं बल्कि कांग्रेस को शहीदों की विधवाओं से माननी चाहिए। उन्होंने कहा कि मैने अफजल गुरु को कांग्रेस का दामाद बता कर कोई भूल नहीं की है। अत:इस कथन पर माफी मांगने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। गडकरी ने कहा कि मैं सुन रहा हूं कि मेरे बयान पर शोर-गुल हो रहा है। कई लोग माफी मांगने की बात भी कर रहे हैं, लेकिन मैं इस बात को हजार बार कहूंगा क्योंकि मैं मानता हूं कि इसमें सच्चाई है। उन्होंने पूछा कि आखिर किस मजबूरी के कारण अफजल की फांसी की फाइल सरकार ने लटकाए रखी और लोगों को गुमराह किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस मुझे इस बात पर माफी मांगने के लिए कह रही है, लेकिन उसे खुद अफजल गुरु को फांसी न दे पाने के लिए संसद हमले के शहीदों की विधवाओं से माफी मांगनी चाहिए। गडकरी ने कहा कि देश प्रेमियों के लिए इससे अधिक क्षोभ का और क्या विषय हो सकता है जब संसद की रक्षा करने वाले शहीदों की विधवाएं ही सरकार को उसका दिया गया मेडल लौटा रही हों।
साभार : जागरण ब्यूरो
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