राज्य पुनर्गठन आयोगों का इतिहास

राज्य पुनर्गठन आयोगों का इतिहास 106 साल पुराना है। सबसे पहले 1903 में तत्कालीन ब्रिटिश भारत सरकार के गृहसचिव हर्बर्ट रिसले की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन समिति गठित की गई थी। इसी समिति ने भाषाई आधार पर पश्चिम बंगाल के विभाजन की सिफारिश की थी, जिसके चलते 1905 में बंगाल का विभाजन हुआ था।
इसके बाद 1911 में लार्ड हार्डिग की अध्यक्षता में एक आयोग बना, जिसने बंगाल के विभाजन को खत्म करने का सुझाव दिया।
1918 में माटेग्यू-चेम्सफोर्ड कमेटी की रिपोर्ट आई थी। हालाकि इसने विधिवत आयोग की तरह काम नहीं किया था, लेकिन प्रशासनिक सुधारों के बहाने इसने छोटे-छोटे राज्यों के गठन का सुझाव जरूर दिया था, लेकिन उसने भाषाई और जातीय आधार पर इनके गठन को नामंजूर कर दिया था।
इसके दस साल बाद मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई, जिसे काग्रेस का पूरा समर्थन था। इस समिति ने भाषा, जन इच्छा, जनसंख्या, भौगोलिक और वित्तीय स्थिति को राज्य के गठन का आधार माना।

1947 में भारत को आजादी मिलते ही भारत के सामने 562 देशी रियासतों के एकीकरण व पुनर्गठन का सवाल मुंह बाए खड़ा था। इसे ध्यान में रखते हुए इसी साल पहले एसके दर आयोग का गठन किया गया। फिर जेबीपी [जवाहर लाल नेहरू, बल्लभभाई पटेल, पट्टाभिसीतारमैया] आयोग का गठन किया गया।

दर आयोग ने भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन का विरोध किया था। उसका मुख्य जोर प्रशासनिक सुविधाओं को आधार बनाने पर था। हालाकि तत्कालीन जनाकाक्षाओं को देखते हुए ही तत्काल जेबीपी आयोग का गठन किया गया। जिसने प्रभावित जनता की आपसी सहमति, आर्थिक और प्रशासनिक व्यवहार्यता पर जोर देते हुए भाषाई आधार पर राज्यों के गठन का सुझाव दिया।

जिसके फलस्वरूप सबसे पहले 1953 में आध्रप्रदेश का तेलगूभाषी राज्य के तौर पर गठन किया गया। तेलंगाना की माग तब जोर पर नहीं थी, लेकिन जनाकाक्षाओं और प्रशासनिक सुविधाओं के आधार पर राज्यों के गठन की माग उठती रही।

इसे ध्यान में रखते हुए 1955 में फजल अली की अध्यक्षता में राज्य पुनर्गठन आयोग का गठन किया गया। इस आयोग ने राष्ट्रीय एकता, प्रशासनिक और वित्तीय व्यवहार्यता, आर्थिक विकास, अल्पसंख्यक हितों की रक्षा तथा भाषा को राज्यों के पुनर्गठन का आधार बनाया।
सरकार ने इसकी संस्तुतियों को किंचित सुधार के साथ मंजूर कर लिया। जिसके बाद 1956 में राज्य पुनर्गठन अधिनियम संसद ने पास किया। इसके तहत 14 राज्य तथा नौ केंद्र शासित प्रदेश बनाए गए।
इसके बाद ही 1960 में बंबई राज्य को विभाजित करके महाराष्ट्र और गुजरात का गठन हुआ। 1963 में नगालैंड गठित हुआ। 1966 में पंजाब का पुनर्गठन हुआ और उसे पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में तोड़ दिया गया। वर्ष 2000 में तीन और नए राज्य बने-छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तराखंड।


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