हिंदुत्व अपनाते तो ग्लोबल वार्मिग न होती

आगरा । राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक मोहनराव भागवत ने कहा कि जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संरक्षण पर आज कोपनहेगन में जो माथपच्ची हो रही है, उसमें अब पूरा विश्व हिंदुत्व की अवधारणा अपनाने की बात कर रहा है। रहन सहन बदलें, विचारधारा बदलें, प्रकृति का दोहन कम करें, जैसी बातें शुरू से हिंदुत्व की दूरदर्शी अवधारणा रही हैं। अगर इस पर अमल किया गया होता तो शायद ग्लोबल वार्मिग की नौबत ही न आती। यहां एक समारोह में स्वोंसेवकों को संबोधित करते हुए श्री भागवत ने ये उद्गार व्यक्त किए।
सर संघचालक बनने के बाद पहली बार आगरा आए श्री भागवत को सुनने मंडल भर से लगभग छह हजार आरएसएस स्वयंसेवक आए थे। मथुरा, फीरोजाबाद, मैनपुरी सहित पूरे मंडल से आए कार्यकर्ताओं का रात से ही शहर में जुटना शुरू हो गया था। सुबह 11 बजे जैन धर्मशाला, दादाबाड़ी, होली पब्लिक स्कूल आवास विकास, धर्मशाला मालवीय कुंज और सुभाष पार्क में शिशु मंदिर से कोठी मीना बाजार तक सभी ने पथ संचलन किया। दोपहर दो बजे जैसे ही श्री भागवत मंच पर पहुंचे, घोष की धुन के साथ ध्वज लहराया गया। सर्वप्रथम सरसंघ चालक प्रणाम हुआ। इसके बाद उद्भाषण शुरू हुआ। श्री भागवत ने कोपहनेगन में जलवायु परिवर्तन को लेकर चल रही माथापच्ची पर हिंदुत्व के बाण दागते हुए कहा कि हिंदुत्व की गहराई अब जाकर विश्व भर के जानकारों की समझ में आई है, जो कहते हैं कि प्रकृति का अत्यधिक शोषण कर दिया।
उन्होंने कहा कि पहले प्रकृति का दोहन किया जाता था तो उसकी भरपाई भी होती थी। पवन चक्की, सौर ऊर्जा, बांध बनाकर ऊर्जा प्राप्त करते थे तो इन सभी के चलायमान होने से दोहन की स्वत: भरपाई भी होती रहती थी। कोयला, यूरेनियम और खनिज वस्तुओं के लिए जमीन खोद खोदकर प्रकृति का खजाना खाली कर दिया है, जिससे पर्यावरण खराब होने लगा। कोपनहेगन में 192 देशों के प्रतिनिधि अब विचार बदलने, रहन सहन बदलने, प्रकृति को सहेज कर रखने की बात कह रहे हैं। यह सभी बातें ही हिंदुत्व को मजबूत करती हैं। सभी इन बातों को नीतिगत तौर पर कहते हैं, सुनते हैं मगर संघ इसका पालन करता है। उन्होंने कहा कि देश में रहने वाले सभी लोग हिंदू हैं। संपूर्ण हिंदू समाज का संगठन तब भी था, आज भी है और सदा रहेगा। समाज को संगठित करना एक स्वाभाविक अवस्था है। भारत हिंदुओं का पुस्तैनी देश है। हिंदू हमारा नाम है, पहचान है। भारतीय संस्कृति की विशेषता है कि यह कभी प्रतिक्रिया नहीं करती। बाहर से कोई भी चीज आती है, उसे ग्रहण कर लेती है। अंग्रेजी भाषा का उदाहरण देते हुए कहा कि हम इस भाषा को हर जगत इस्तेमाल करते हैं, मगर यह राष्ट्रीय भाषा नहीं बन सकती। ईसामसीह पूज्यनीय हो सकते हैं, मगर देश की पहचान नहीं। चारों दिशाओं को जोड़ने वाले शिव हैं। उत्तर दक्षिण को भगवान राम और पूर्व पश्चिम को जोड़ने वाले भगवान कृष्ण हैं।

उन्होंने कहा कि संघ में देने की प्रवृत्ति सिखाई जाती है, लेने की नहीं। यहां आकर कुछ नहीं मिलेगा, जो है वह भी चला जायगा। धन्यवाद कहीं नहीं। उन्होंने कहा कि संघ में 1.57 लाख प्रकल्प चल रहे हैं। 200 से अधिक संगठन इससे जुड़े हैं। भाषण के बीच में शारीरिक प्रदर्शन, दंड, योग, सूर्य नमस्कार हुआ।

इससे पूर्व संचालक कर्ता केशव शर्मा ने श्री भागवत, विभाग संघचालक हीरालाल एवं प्रांतीय संघचालक डा. अवधेश प्रताप का परिचय कराया। रमन अग्रवाल ने गीत प्रस्तुत किया, वहीं प्रार्थना राजेश कुलश्रेष्ठ ने कराई।



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