जीवनी - मोहनराव भागवत


मोहनराव भागवत का जन्म 1950 में महाराष्ट्र के चंद्रपुर में हुआ था. उनके पिता मधुकर राव भागवत संघ के प्रचारक थे जो बाद में गुजरात प्रांत के भी प्रचारक बने. संघ की प्रचारक परम्परा में विवाह का निषेध है. लेकिन मोहनराव भागवत के जीवन का पहला मिथक यहीं टूटता है कि वे एक प्रचारक के बेटे हैं. मधुकरराव भागवत मानते थे कि संघ कार्य और निजी जीवन दोनों में कोई विरोधाभास नहीं हो सकता इसलिए वे पारिवारिक जीवन जीते हुए आजीवन संघ का काम करते रहे. मोहनराव भागवत का जन्म और लालन पालन में संघ कार्य के प्रति गहरा जुड़ाव शुरू से ही था.

तीन भाईयों और एक बहन में मोहनराव भागवत सबसे बड़े हैं. उनके एक भाई अभी चंद्रपुर में संघ का काम देखते हैं. खुद मोहनराव भागवत की शिक्षा दीक्षा चंद्रपुर से हुई और उन्होंने लोकमान्य तिलक विद्यालय से प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की. बीएससी भी उन्होंने चंद्रपुर से ही किया लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए वे नागपुर चले आये. नागपुर में उन्होंने एमवीएससी की पढ़ाई की. एमवीएससी करने के बाद दो महीने के लिए मोहनराव चंद्रपुर लौटे और वहां के जिला पशु अस्पताल में प्रैक्टिस किया लेकिन दो महीने बाद वे गढचिरौली में एक्सटेंशन आफिसर के तौर पर नियुक्त हो गये. यहां उन्होंने डेढ़ साल तक सरकारी नौकरी की. लेकिन मोहनराव ने नागपुर में अपनी पढ़ाई के दौरान ही तय कर लिया था कि वे संघ के प्रचारक बनेंगे और उन्होंने वही किया. 1975 में इमरजंसी में भूमिगत कार्यकर्ता के तौर पर काम करते हुए आपातकाल की समाप्ति के बाद वे संघ में बतौर प्रचारक कार्यरत हो गये.

अकोला में जिला प्रचारक रहे, फिर संघ की रचना में जिस तरह से प्रांतों का निर्माण किया है उसमें विदर्भ एक अलग प्रांत है. वे विदर्भ के प्रांत प्रचारक रहे. विदर्भ के प्रांत प्रचारक रहते हुए वे नागपुर के संघ मुख्यालय के संपर्क में लगातार बने रहे. विदर्भ के बाद वे बिहार के क्षेत्र प्रचारक रहे. 1987 में संघ की केन्द्रीय कार्यकारिणी में आ गये और अखिल भारतीय सह शारिरीक प्रमुख के बतौर काम करने लगे. केन्द्रीय कार्यकारिणी में उन्होंने 1991 से 1999 तक शारीरिक प्रमुख के रूप में काम किया फिर एक साल के लिए प्रचारक प्रमुख हुए. सन 2000 में जब सुदर्शन सरसंघचालक बने तो मोहनराव भागवत सरकार्यवाह बनाये गये. 2000 से 2009 तक वे तीन संघ के सरकार्यवाह बने रहे. आरएसएस की कार्यप्रणाली में दूसरे नंबर का कार्याधिकारी होता है. सरकार्यवाह रहते हुए मोहनराव भागवत आमतौर पर चुपचाप ही काम करते रहे और कभी संघ की सीमा के बाहर जाकर न तो मीडिया से बात की और न ही किसी प्रकार का कोई बयान दिया. संघ और उसके अनुसांगिक संगठनों के मंचों पर वे लगातार संघ को मजबूत करने के लिए बोलते और काम करते रहे. लेकिन 22 मार्च 2009 को नागपुर में जब उन्हें आरएसएस का छठां सरसंघचालक बनाने की घोषणा की गयी तब शायद ही किसी को उम्मीद रही हो कि मोहनराव की संघवाली दृढ़ता भाजपा के साथ भी लागू होगी और सबसे पहले उनके पारिवारिक मित्र और पिता के शिष्य लालकृष्ण आडवाणी पर ही लागू होगी.

गुजरात में प्रांत प्रचारक रहते हुए मधुकरराव भागवत ने ही आडवाणी को संघ और राजनीति की ट्रेनिंग दी थी. इसलिए जब मोहनराव भागवत सरसंघचालक नियुक्त हुए तो सारा चुनाव प्रचार अधर में छोड़कर आडवाणी उन्हें बधाई देने नागपुर जा पहुंचे थे. उससे पहले जब आडवाणी की किताब माई कन्ट्री माई लाईफ का लोकार्पण दिल्ली में हुआ था तो मोहनराव भागवत भी मंच पर निमंत्रित किये गये थे. लेिकन उस वक्त भी मोहनराव भागवत ने कहीं से यह प्रदर्शित करने की कोशिश नहीं कि वे भविष्य के भाजपा की रूपरेखा तय करनेवाले शिल्पकार हैं इसलिए उनको इस लोकार्पण में महत्व मिलना चाहिए. किताब का लोकार्पण हुआ तो उनके हाथ में एक प्रति भी नहीं थी और वे चुपचाप किनारे खड़े थे. खैर, आडवाणी से उनके निजी और पुराने संबंध हैं लेकिन जब बात संगठन और भाजपा की आई तो मोहनराव भागवत ने वही शैली अपनाई जिसकी उनसे उम्मीद थी. उन्होंने दो टूक कह दिया आडवाणी को नेतृत्व छोड़ना होगा.

मोहनराव भागवत की कार्यशैली की एक खास विशेषता यह है कि वे अपने निर्णय से कभी डिगते नहीं है और निजी संबंधों की बजाय संगठन की नीतियों और सिद्धांतों को प्राथमिकता देते हैं. जब आमचुनाव के बाद आडवाणी हारे हुए सिपाही साबित हुए और पूरे देश के स्वयंसेवकों ने आडवाणी की कार्यशैली का विरोध शुरू किया तभी तय हो गया था कि आडवाणी को जाना होगा. लेकिन यह आडवाणी थे जिन्होंने बीच में अपना राजनीतिक वजूद बचाये रखने और भाजपा को संघ से मुक्त रखने क िलए मीडिया में प्रोपगेण्डा का सहारा लेना शुरू कर दिया. फिर भी मोहनराव मौन बने रहे लेकिन जब आडवाणी ने यह कहा कि मोहनराव से मुलाकात के दौरान नेतृत्व परिवर्तन की कोई बात नहीं हुई है तब एक निजी टीवी चैनल से बात करते हुए मोहनराव ने साफ कर दिया कि नेतृत्व परिवर्तन अवश्यंभावी है और भाजपा में ऐसे पचहत्तर नेता हैं जो नया नेतृत्व दे सकते हैं.

संघ की विचारधारा और कार्यशैली में आरएसएस के नये मुखिया मोहनराव भागवत को न रत्तीभर संदेह है और शक. वे कहते भी हैं कि "हम सब आते जाते रहेंगे लेकिन विचारधारा और संगठन शास्वत रूप से बने रहेंगे." संघ की विचारधारा और संघ संस्थापक के प्रति उनकी निष्ठा का ही परिणाम है कि उनके मूंछों की शैली भी वही है जो संघ के संस्थापक डॉ हेडगेवार की थी. संघ में आमतौर निष्ठा से उन्हें संघ संस्थापक का नया रूप मानकर देखा जाता है. उनके प्रति संघ के लोगों की श्रद्धा सामान्य शिष्टाचार से अधिक निजी और प्रगाढ़ है. ताजा भाजपा विवाद में वे अपनी इस विचारधारा पर ही खरे उतरते दिखाई दे रहे हैं. पशु चिकित्सक से प्रचारक बने और पारिवारिक जीवन जीते हुए संघ की सर्वोच्च सत्ता पर विराजमान मोहनराव के इस आपरेशन भाजपा का क्या परिणाम निकलेगा यह तो आनेवाला वक्त ही बताएगा लेिकन एक बात तय है कि मोहनराव जातने हैं कि अगले कम से कम 10-15 साल उन्हें संघ का सक्रिय रूप से काम करना है. ऐसे में वे भाजपा का आपरेशन किसी एक चुनाव और नेता की बजाय उसे दोबारा संघ का वही राजनीतिक हथियार बनाना चाहते हैं जिसको ध्यान में रखकर संघ ने राजनीति में कदम रखा था. फिलहाल तो लगता नहीं कि भाजपा में कोई उन्हें ऐसा करने से रोकने की हैसियत रखता हो.
साभार - विस्फोट.कॉम

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