पहलगाम कश्मीर घाटी में मौजूद 900 साल पुराने शिव मंदिर के पुजारी मुस्लिम हैं। संभवत: कश्मीर घाटी का यह ऐसा एकमात्र हिंदू मंदिर है। बर्फीली लिडर नदी के किनारे स्थित इस मंदिर में आज भी घंटियों की आवाज सुनाई पड़ती है। कश्मीरी पंडितों के घाटी छोड़कर चले जाने के बाद पास के गांव के मोहम्मद अब्दुल्ला और गुलाम हसन ने मामालाक मंदिर का प्रभार संभाला और मंदिर के दरवाजों को बंद नहीं होने दिया। इसलिए मंदिर की घंटियों के बजने का सिलसिला आज भी जारी है। गुलाम हसन ने बताया कि हम केवल मंदिर की देखरेख ही नहीं करते बल्कि रोज मंदिर में 'आरती' भी करते हैं। हम सिर्फ मंदिर में स्थित तीन फुट के शिवलिंग की सुरक्षा का ही सिर्फ ध्यान नहीं रखते, बल्कि यह ख्याल भी रखते हैं कि कोई भी श्रद्धालु मंदिर से प्रसाद लिए बगैर न जाए। कश्मीर छोड़ने से पूर्व पंडित जी यह दायित्व अपने मुस्लिम मित्र अब्दुल भट को देकर गए थे।
राजा जय सूर्या द्वारा निमिर्त इस मंदिर का महत्व एक समय ऐसा था कि कोई भी अमरनाथ यात्री इस मंदिर का दर्शन किए बिना आगे की यात्रा शुरू नहीं करता था। इस मंदिर का संचालन लंबे समय से पंडित राधा कृष्ण के नेतृत्व में स्थानीय कश्मीरी पंडित संघ किया करता था। लेकिन, 1989 में कश्मीर छोड़कर चले जाने से पूर्व पंडित जी यह दायित्व अपने मुस्लिम मित्र अब्दुल भट को देकर गए थे। पंडित जी ने अपने मित्र से रोजाना मंदिर के दरवाजे को खोलने का आग्रह किया था। वादे के अनुरूप भट ने 2004 में हुए तबादले से पहले तक रोज मंदिर की देखरेख करना और उसका दरवाजा खोलना और बंद करना जारी रखा था। उसके बाद से यह उत्तरदायित्व मोहम्मद अब्दुल्ला और गुलाम हसन निभाते आ रहे हैं। इनका कहना है कि हमें भगवान शिव में आस्था है। हम केवल मंदिर की देखरेख ही नहीं करते, हमने मंदिर के अंदर मरम्मत का काम भी करवाया है ताकि मंदिर का कामकाज आतंकवादियों के धमकी के बावजूद सुचारु रूप से चलता रहे। पिछले 4 साल में इस मंदिर के दर्शन के लिए आनेवाले हिंदू श्रद्धालुओं की संख्या में भी वृद्धि हुई है। इनमें वे लोग भी शामिल हैं जो यहां से छोड़कर चले गए थे और अब एक पर्यटक के रूप में इस मंदिर का दर्शन करने आया करते हैं।
साभार - नव भारत टाईम्स
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अनुकरणीय उदाहरण!
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