अब आडवाणी से पूछ कर होंगे संगठन के फैसले |

भारतीय जनता पार्टी के संगठन और प्रशासन संबंधी सभी फैसले अब नेता विपक्ष लालकृष्ण आडवाणी से पूछ कर ही होंगे। राजस्थान व दिल्ली विधानसभा चुनाव में हार से हताश और लोकसभा चुनाव सामने देख भाजपा ने अपने संगठन को एक ध्रुवीय बनाने का फैसला किया है। यानी एक बार फिर संगठन की व्यावहारिक कमान उन्हीं आडवाणी को सौंपी जा रही है, जो जिन्ना विवाद के बाद अचानक पार्टी के भीतर अवांछित हो गए थे।

यह निर्णय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व का है। शनिवार को हुई उनकी संयुक्त बैठक में संघ की तरफ से सर कार्यवाह मोहन भागवत, सह सर कार्यवाह मदनदास देवी, सुरेश सोनी और रामलाल शामिल हुए। बैठक में भाजपा की ओर से राजनाथ सिंह, आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अरुण जेटली, वेंकैया नायडू और सुषमा स्वराज ने शिरकत की। बैठक लंबी चली, कई मुद्दों पर बात हुई लेकिन एक विषय पर आम सहमति थी। वह यह कि चुनाव जीतना है तो पार्टी को अनिर्णय और असमंजस से उबरना होगा। हाल के राजस्थान और दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों का संदर्भ लेकर संघ नेतृत्व ने संगठन में व्यापक कमियों का सवाल उठाया। उसने पूछा कि राजस्थान में चुनाव परिणाम आने के बाद वसुंधरा राजे, राज्य संगठन और संघ में तलवारें क्यों खिंचीं, क्या यह उचित था? यह भी कहा गया कि इन्हीं मतभेदों का खामियाजा पार्टी को हार के रूप में उठाना पड़ा। एक बड़े नेता की टिप्पणी थी, 'राजस्थान में भाजपा हारी नहीं, हिट विकेट हुई।' मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के उदाहरण भी रखे गए। माना गया कि कुछ निर्णयों का सांगठनिक ढांचे पर प्रतिकूल असर पड़ा।

यही वे कारण थे जिन्होंने संघ को भाजपा में समन्वय की अपनी ही पुरानी थ्योरी बदलने पर विवश किया। ध्यान रहे, कुछ अरसा पहले संघ ने ही भाजपा के संसदीय मामलों की कमान लालकृष्ण आडवाणी को देने और संगठन को पूरी तरह राजनाथ के हवाले करने का फार्मूला निकाला था। कुछ दिन तक तो यह सिलसिला ठीक चला, लेकिन फिर संगठन की रंफ्तार हिचकोले लेने लगी। उन्हीं कड़वे अनुभवों के आधार पर शनिवार को संघ ने मान लिया कि यह फार्मूला अपेक्षित परिणाम नहीं दे सका। लोकसभा चुनाव सामने हैं और पार्टी अगर केंद्र में आना चाहती है तो उसे सख्त तेवर भी दिखाने होंगे। इसीलिए संगठन की परोक्ष कमान एक बार फिर उन्हीं आडवाणी के हाथ में होगी, जिनकी छवि का जिन्ना विवाद के बाद पराभव हुआ था और जो अपने ही संगठन में अवांछित हो गए थे। यानी भाजपा संगठन में अब जिन्ना प्रकरण से पहले वाले आडवाणी की चलेगी।

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