असाधारण उपहार

राजा भोज के राज्य में एक बेहद गरीब ब्यक्ति रहता था | उसे जो कुछ भीख मिल जाता था, उसी से गुजरा करता था | एक बार वह खाली हाथ लौटा | आते ही उसने पत्नी से कहा, कुछ खाने को दो | घर में कुछ न होने के कारण पत्नी अत्यन्त क्रोधित हुई | क्रोध में आकार उसने उसे भला बुरा कहा | वह ब्यक्ति भड़क उठा | उसने पत्नी की पिटाई कर दी | उसी समय राजा के सिपाही उधर से गुजर रहे थे | वह उस ब्यक्ति को पकड़ कर ले गए | उसे राजा के सामने पेश किया गया | उस ब्यक्ति ने अपनी दशा के बारे में विस्तार से बताया और बोला महाराज मैं भूख से ब्याकुल होकर अपना आपा खो बैठा था | मैंने क्रोध में यह कदम उठाया, मुझे दंड दे |
राजा भोज ने खजांची को आदेश दिया की उस ब्यक्ति को एक हजार मुद्राये दी जाए | यह सुनकर सभी चकित रह गए | राजा के मंत्री ने इस बारे में जिज्ञासा प्रकट की तो भोज ने कहा - मैं इसे अपनी पत्नी पर प्रहार करने के लिए ये मुद्राये नही ने रहा हूँ | मैं इसका दुःख दूर करने के लिए इसे धन ने रहा हूँ | अगर इसे कारागार में दल दिया जिया तो इसका परिवार तितर बितर हो जाएगा | सम्भव है यह ब्यक्ति तब अपराधी बन जाए | अभी इसकी दरिद्रता दूर हो जाने से यह किसी काम धंधे में लग सकता है | यही मेरा उद्देश्य है |

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