जेहादी आतंकवाद का संगठित प्रतिरोध करें : सुदर्शन



मुजफ्फरपुर । आरएसएस प्रमुख कुप.सी. सुदर्शन ने हिन्दू समाज से एकजुट होकर राष्ट्र व संस्कृति पर होने वाले जेहादी हमले व आतंकवाद का मुंहतोड़ जवाब देने का आह्वान किया है। मुम्बई हमले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि संगठित प्रतिरोध का परिणाम है कि सरकारें भी डरने लगी हैं। मुसलिम भाइयों व राष्ट्रभक्त मौलवियों ने भी आतंकवाद के खिलाफ आगे आते हुए कहा कि इस्लाम का मतलब शांति होती है। उन्होंने भारत में मंदी के लिए केन्द्र को जिम्मेवार ठहराया और कहा कि भोगवादी व्यवस्था के कारण आज अमेरिका भी दिवालिया होने के कगार पर है।

संघ प्रमुख श्री सुदर्शन पांच दिवसीय दौरे के अंतिम दिन रविवार को मुखर्जी सेमनरी स्कूल के प्रागंण में स्वयंसेवकों व आम लोगों की सभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि राष्ट्र का सामाजिक व अर्थव्यवस्था में सुधार हिन्दू चिंतन से ही संभव है। महात्मा गांधी के विचारों का उल्लेख करते हुए कहा कि उन्होंने भी इसी चिंतन के आधार पर गांव को धूरी मान विकास का ढांचा खड़ा करने का सुझाव नेहरू को दिया था। लेकिन पश्चिमी नकल में उसे नकार दिया गया। संघ प्रमुख ने कहा कि सत्ता के माध्यम से समाज परिवर्तन संभव नहीं है। समाज परिवर्तन के लिए समाज को ही खड़ा होना होगा। इसलिए संघ समाज का संगठन चलाता है और व्यक्ति निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में जुटा है। संघ का भाजपा, विहिप आदि अनुषांगिक संगठनों पर नियंत्रण की बात से भी उन्होंने इनकार किया। कहा कि संघ सिर्फ भटकाव होने पर दिशाभ्रम का एहसास दिलाता है। उन्होंने कहा कि 83 वर्षो की साधना के कारण आज हिन्दू समाज गर्व से हिन्दू ही नहीं कहता बल्कि समाज व संस्कृति पर विपत्तियां आने पर अब जाकर प्रतिकार भी होने लगे हैं। चाहे रामजन्मभूमि मुक्ति, बाबा अमरनाथ भूमि अधिग्रहण, रामसेतु संरक्षण का मामला हो या उड़ीसा में लक्ष्मणानंद सरस्वती की हत्या से उपजे प्रतिरोध का। इन स्थानों पर पूरा हिन्दू समाज एकजुट हो गया। 2011 तक भाग्योदय का यह शुभ संकेत है। उन्होंने आगाह किया कि भाग्योदय का मतलब यह नहीं है कि लोग चादर तान घर में सो जाये, बल्कि अपने-अपने क्षेत्र में हिन्दू चिंतन के आधार पर संगठन खड़ा कर वहां की समस्याओं का निदान करना होगा। हालांकि संघ प्रमुख ने इस बात पर चिंता प्रकट की कि जिस तरह इस्लाम व इसाई के बारे में गलत प्रचार करने पर पूरा समाज खड़ा हो उठता है, उस तरह हिन्दू समाज अभी भी संगठित नहीं होता। घटना होने पर सोचते तो सभी हैं, लेकिन आगे कौन बढ़े इस पर बगले झांकने लगता है। यह सोचना कि संघ सबकुछ करेगा, नहीं चलेगा। हर व्यक्ति व स्वयंसेवकों को आगे आना होगा। संघ कार्य में आने वाली बाधाओं का भी जिक्र किया। एक लघु कथा सुनायी, कहा कि जब कोई सतत साधना रहता है तो भगवान भी उसकी परीक्षा लेते हैं और भूत-पिचाश भी अड़ंगें डालते हैं। अप्सराओं के माध्यम से साधना भंग करने की कोशिश की जाती है। हिन्दू समाज को संगठित करने के लिए 83 वर्षो से साधनारत संघ के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। तीन-तीन बार प्रतिबंध लगे। कभी सत्ता का लालच दिया गया तो कभी अन्य प्रकार से बदनाम करने की साजिश रची गयी। लेकिन संघ व्यक्ति निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण के कार्य में जुटा रहा।

दैनिक जागरण से साभार

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