आजादी के बाद पहली बार संघ ने बदला ड्रेस कोड


नई दिल्ली।। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने कार्यकर्ताओं के ड्रेस कोड में 64 साल बाद कुछ बदलाव करते हुए चमडे़ की जगह साधारण बेल्ट को अपनाने का फैसला किया है लेकिन खाकी निक्कर को पैंट में बदलने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया है।

संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉक्टर मनमोहन वैद्य ने बताया कि बदलाव इस साल मई-जून में संघ शिक्षा वर्ग के आयोजन से लागू होंगे। चमड़े की जगह साधारण बेल्ट के साथ उसका बकल भी अब तांबे की बजाय स्टील का होगा।

यह पूछे जाने पर कि संघ ने बेल्ट के अलावा यूनिफॉर्म में क्या कोई और बदलाव भी किया है? जैसे क्या हाफ पैंट की बजाय फुल पैंट पहनने की अनुमति होगी, जिसकी काफी समय से कुछ कार्यकर्ता मांग कर रहे हैं, वैद्य ने कहा कि बेल्ट के अलावा कोई और बदलाव नहीं किया गया है।

उन्होंने बताया कि अभी तक संघ के लोग चमड़े की जो बेल्ट लगाते थे, उन्हें खासतौर पर कानपुर की उन टेनरियों से लिया जाता था जहां मारे गए जानवरों की खाल का प्रयोग नहीं होता है। उन्होंने कहा कि संघ ने हमेशा यह शर्त रखी कि उसे सप्लाई की जाने वाली बेल्ट मारे गए जानवरों की खाल से नहीं बनी होनी चाहिए।

चमड़े की बजाय कृत्रिम पदार्थ की बेल्ट के बदलाव का कारण पूछे जाने पर उन्होंने बताया कि कुछ सदस्यों, विशेषत: जैन समुदाय के लोगों को चमड़े की बेल्ट पर आपत्ति थी। वे इसे पहनने में असहज महसूस करते थे, भले ही ये बेल्ट मारे गए जानवरों की खाल से नहीं बनी होती थीं। संघ के मंचों से ऐसे सदस्यों की ओर से अक्सर आग्रह होता था कि चमड़े की बेल्ट की जगह कृत्रिम पदार्थ की बेल्ट ली जाए।

संघ के ड्रेस कोड में सबसे पहला बदलाव 1940 में किया गया था। वैद्य ने बताया कि ब्रिटिश काल में हाफ पैंट और कमीज दोनों खाकी रंग की हुआ करती थीं और कमीज पर आरएसएस अंकित तांबे का बिल्ला लगा रहता था। 1940 में इसमें परिवर्तन करके कमीज को खाकी की बजाय सफेद कर दिया गया। उन्होंने कहा कि हाफ पैंट और खाकी कमीज की बजाय खाकी हाफ पैंट के साथ सफेद कमीज ज्यादा ठीक लगती है। प्रचार प्रमुख ने बताया कि दूसरा परिवर्तन 1947 में किया गया। तब तक संघ कार्यकर्ता शाखाओं में एड़ी से ऊंचे लॉन्ग बूट पहनते थे। तब लॉन्ग बूट की बजाय सामान्य काले जूते कर दिए गए और अब 64 साल बाद यह तीसरा बदलाव हुआ है।

वैद्य ने कहा कि संघ हमेशा बदलाव के पक्ष में रहा है। जब भी बदलाव की जरूरत होती है संघ अपने को बदलता है।


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