गुनाह की सजा मौत पर कर रहे सरेआम मौज
नई दिल्ली। वो आराम से रहते हैं। रोज नाश्ता करते हैं और दोनों वक्त का खाना खाते हैं। जब कुछ अच्छा खाने का मन करता है तो लजीज खाना भी मंगवा लेते हैं। और तो और इस सबके लिए उन्हें कोई काम भी नहीं करना पड़ता। आप सोच रहे होंगे कि यह सुख-सुविधा तो देश के सर्वाधिक संपन्न लोगों को भी मुहैया नहीं है। लेकिन आपको यह जानकर और भी आश्चर्य होगा कि इन सुख-सुविधाओं का भोग कोई और नहीं बल्कि वे कर रहे हैं, जो तमाम संगीन अपराधों में राजधानी दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद हैं।
इन कैदियों में संसद पर हमला करने का दोषी मुहम्मद अफजल गुरु भी शामिल है। इन सभी को अदालतें फासी की सजा सुना चुकी हैं। उनमें से कुछ ने अगली अदालत में अपील की हुई है और कुछ ने राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर कर रखी है। इसे भारतीय कानून व्यवस्था की खामी कहें या सरकार की लापरवाही, फासी की सजा सुनाए गए आठ खूंखार कैदी सालों से तिहाड़ जेल के दामाद बने हुए हैं। वे रहते भी अलग से बनी विशेष बैरक में हैं और वर्षो से तिहाड़ में मौज काट रहे हैं। इनकी सजा पर अंतिम फैसला नहीं हो पा रहा है।
एक कैदी ने तो गर्दन में सर्वाइकल का दर्द बताकर हाल ही में सोने के लिए आरामदेह गद्दे की मांग कर डाली, जिसे जेल प्रशासन द्वारा पूरा भी किया गया। विडंबना यह कि जेल प्रशासन व आला अधिकारी भी इन कैदियों का ध्यान रखने को बाध्य हैं और उनको मिली सजा को अब तक अमलीजामा न पहना पाने में असहाय दिखाई पड़ते हैं। फांसी की सजा सुनाए गए होने के कारण इन कैदियों से कोई काम भी नहीं लिया जाता। अब ये कैदी मौत के भय से बेफिक्र से हो गए हैं।
संसद पर हमले के दोषी मुहम्मद अफजल गुरु को वर्ष 2002 और आल इंडिया एंटी टेरेरिस्ट फ्रंट के चेयरमैन मनिंदरजीत सिंह बिट्टा पर जानलेवा हमला करने वाले देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर को वर्ष 2001 में फासी की सजा सुनाई गई थी। लेकिन दोनों ने ही भारतीय कानून की खामियों का फायदा उठाते हुए राष्ट्रपति के पास दया के लिए अपील दायर कर रखी है। इसकी सुनवाई लंबित होने के कारण दोनों तिहाड़ में मौज काट रहे हैं।
इसी प्रकार नैना शर्मा, तंदूर काड मामले के दोषी सुशील शर्मा को वर्ष 2003, प्रियदर्शिनी मट्टू हत्याकांड के दोषी संतोष सिंह को वर्ष 1999, लाल किला गोलीकांड के दोषी मुहम्मद आरिफ को वर्ष 2005, हत्या के मामले में दोषी ठहराए गए अतबीर को वर्ष 2004 और मुहम्मद हुसैन को वर्ष 2006 तथा राजेश कुमार को वर्ष 2007 में फासी की सजा सुनाई गई थी। लेकिन इन सबने भी कानून व्यवस्था में कमजोरी का फायदा उठाते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर दी और अब खूब मजे से उनके दिन काट रहे हैं।
तिहाड़ सूत्रों के मुताबिक, इन सभी कैदियों के को फासी की सजा सुनाए गए तीन से 11 साल हो गए हैं, लेकिन उन्हें न तो अब तक फासी हुई है और न ही निकट भविष्य में होने की संभावना लग रही है। आलम यह है कि अब तो इन कैदियों के चेहरे से फासी का खौफ भी खत्म हो गया है। कैदियों का ख्याल रखना जेल प्रशासन की मजबूरी सुनील गुप्ता तिहाड़ के कानून अधिकारी सुनील गुप्ता भी मानते हैं कि यह सभी कैदी कहीं न कहीं कानून व्यवस्था का मजाक उड़ा रहे हैं, पर तिहाड़ प्रशासन इसमें कुछ नहीं कर सकता। जब तक उनकी अपीलों पर सुनवाई नहीं हो जाती, उनकी सजा पर अमल नहीं किया जा सकता। रही बात कैदियों की मांगों और सुख-सुविधाओं का ख्याल रखने की तो कोर्ट का आदेश मानना जेल प्रशासन की मजबूरी है। कोर्ट के कहने पर ही देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर को सोने के लिए आरामदेह गद्दा उपलब्ध कराया गया है।
साभार - दैनिक जागरण
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