नीतीश की महादलित रैली


बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना में महादलितों की रैली कर एक तीर से कई निशाने साधने का प्रयास किया है. गांधी मैदान, पटना में आयोजित महादलित एकजुटता मोर्चा की रैली में उन्होंने दो-टूक कहा कि भ्रष्टाचारियों को नहीं बख्शेंगे. इस क्रम में उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी कानून का हवाला दिया, जिसके तहत भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कार्रवाई होगी. उनकी सम्पत्ति जब्त की जाएगी. जब्त हुए मकान में स्कूल खोले जाएंगे जिसमें महादलितों के बच्चे भी पढ़ सकेंगे. और भी ऐसी घोषणाएं की गयीं, जिसके जरिये वे अपनी धूमिल होती छवि को सुधारने का प्रयास कर रहे हैं.
यह तथ्य कम आश्चर्यजनक नहीं है कि रैली में भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की घोषणा करने वाला मुख्यमंत्री खुद भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने का आरोप झेल रहा है. और यह आरोप महज विपक्षी दल का हो, ऐसी बात नहीं. खुद जद (यू) के विधायक एवं उनकी सरकार में उत्पाद मंत्री रहे जमशेद अशरफ ने उन पर गंभीर आरोप लगाये हैं. उन्होंने शराब ठेका आवंटन मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है. हालांकि, इस विरोध की कीमत उन्हें नीतीश मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी के रूप में चुकानी पड़ी, अब विपक्ष ने भी इस आरोप के मद्देनजर नीतीश सरकार पर करारा प्रहार शुरू कर दिया है तथा इस मामले की सीबीआई जांच कराने की मांग की है.
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भले ही विपक्ष पर विरोध की राजनीति करने का आरोप लगा रहे हों, पर आखिर खुद प्रदेश जद (यू) में उनके प्रति विरोध के स्वर की अनदेखी नहीं की जा सकती. यह मानना कठिन है कि जमशेद अशरफ का विरोध नीतीश कुमार के साथ व्यक्तिगत कारणों से अथवा उनके प्रति पूर्वाग्रह के कारण है.
दूसरी बात यह कि विरोध की यह स्थिति महज सरकार में हो ऐसी बात नहीं. सत्तारूढ़ जद (यू) में विरोध के स्वर भी अभी थमे नहीं हैं. पार्टी के पूर्व अध्यक्ष ललन सिंह ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कार्यशैली पर उंगली उठाते हुए पार्टी अध्यक्ष पद से अपना इस्तीफा दिया था. उनके द्वारा उठाये गये सवालों पर ध्यान नहीं दिया गया. हां, प्रदेश जद (यू) के अध्यक्ष पद को किसी अन्य नेता को जरूर सौंप दिया गया. पर इससे पार्टी के कुछ नेताओं के इस आरोप को बल मिला कि पार्टी नेता जातीय संतुलन नहीं साध पा रहे हैं तथा वे सवर्ण समुदाय की अनदेखी व उपेक्षा कर रहे हैं. ललन सिंह के पूर्व भी पार्टी के कुछ वरिष्ठ नेता इस आशय के आरोप लगा चुके हैं. हालांकि, नीतीश कुमार इन आरोपों को नकारते रहे हैं तथा इसे वे कुछ परिवारवादी महत्वाकांक्षी नेताओं की करतूत मानते हैं. उन्होंने पार्टी के अपने विरोधियों को टू-टूक कह दिया है कि पार्टी मौजूदा रास्ते पर ही दृढ़ता से चलती रहेगी तथा उसमें किसी बदलाव की कोई गुंजाइश नहीं है. स्वभावत: इससे जद (यू) का एक खेमा मुख्यमंत्री से नाराज है तथा वह अपना विरोध प्रकट करने के लिये मौके की तलाश में है. जमशेद अशरफ के विरोध के बाद कुछ और लोग मुख्यमंत्री से असंतुष्ट हो गये हैं.
इन दो मोर्चे के अलावा नीतीश कुमार ने पहले से ही दलित समुदाय को दो भागों में बांटकर एक खेमे का विरोध मोल ले लिया है. कुछ दलित समूह को महादलित का दर्जा देकर वे उसके लिये विभिन्न कल्याणकारी घोषणाएं करने में जुटे हैं. राजनीति की समझ रखने वाला सामान्य आदमी भी यह बात अच्छी तरह जानता है कि इस रणनीति के जरिये वे राज्य की राजनीति में राम विलास पासवान को अलग-थलग करना चाहते हैं. पर बात महज राम विलास पासवान की नहीं है. दलितों में पासवान के विरुद्ध अन्य जातियों को महादलित के नाम पर खड़ा कर देना किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता. पटना में सत्ता का लाभ उठाते हुए महादलितों की रैली आयोजित करा लेना कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं मानी जा सकती. यह मानना कठिन है कि पासवान समुदाय के सभी लोग साधन सुविधा संपन्न हैं तथा शेष जातियों में सभी वंचित व लाचार. हर समुदाय में आर्थिक रूप से सक्षम लोग हैं तो अक्षम भी. यही वजह है कि कुछ लोग आर्थिक रूप से कमजोर सवर्ण समुदाय के लिये भी आरक्षण की मांग कर रहे हैं. सर्वोच्च न्यायालय ने इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए ही आरक्षित समुदाय के लिये क्रीमी लेचर का प्रावधान किया है. ताकि उस वर्ग के साधन सुविधा सम्पन्न लोगों को आरक्षण के दायरे से बाहर निकाला जा सके. यह बात किसी भी समुदाय पर लागू होती है. अत: भारी भीड़ इकट्ठा कर एवं भ्रष्टाचार विरोधी गर्जन-तर्जन कर नीतीश कुमार अपनी धूमिल होती छवि को बिगडऩे से नहीं बचा पाएंगे. वह चाहे पार्टी में हो अथवा सरकार में.
अत: बेहतर तो यही होगा कि संकीर्ण, निजी अथवा दलीय हित के लिये लोगों को बांटा नहीं जाना चाहिए. विभाजन अंतत: समुदाय एवं समाज को कमजोर ही करता है. इसलिये ऐसे किसी भी कृत्य को उचित नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह न तो जनहित में है. न ही समाज अथवा राष्ट्रहित में.


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