बाग्लादेशियों पर मेहरबान, शहर हैरान!
वाराणसी : अपने देश में करोड़ों ऐसे परिवार हैं जिन्हें दो वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं है। गरीबी का दंश न झेल पाने वाले किसान अपनी इहलीला समाप्त कर रहे हैं और हमारे जनप्रतिनिधि इनकी जिंदगी संवारने की बजाय पड़ोसी मुल्क बाग्लादेश के वाशिदों पर मेहरबान हैं। शहर हैरान है यह देखकर कि रेलवे लाइन के किनारे व अन्य स्थलों पर बाग्लादेशियों की झुग्गी झोपड़ियों की जब रेल प्रशासन ने सफाई शुरू की तो कई माननीय व हितैषी आ खड़े हुए। जो हटाए जा रहे हैं, वे कौन हैं, कब से यहा बसे हैं ? उनको इससे कोई मतलब नहीं है। सबूत के तौर पर बखूबी राशन कार्ड दिखाते हैं। इस बात को स्वीकार करने तक को तैयार नहीं कि यह बाग्लादेशी हैं जबकि इनकी भाषा व रहन-सहन से कोई भी बता सकता है कि ये कौन हैं।
ऐसे लोगों के लिए काशी नगरी के कुछ माननीय तो आजकल उन्हें काशीराम शहरी गरीब आवास योजना के तहत आशियाना दिलाने तक के लिए दिन-रात एक किए हुए हैं। शासन-प्रशासन में पत्राचार से लेकर धरना-प्रदर्शन का दौर शुरू हो चुका है। हो भी क्यों न आखिर वोट बैंक की खातिर देश की आतरिक सुरक्षा से खिलवाड़ करने वाले इन साहबान लोगों ने बाग्लादेशियों को भारत का नागरिक जो पहले ही बनवा रखा है।
कैंट विधानसभा क्षेत्र के शर्मा जी को भले ही अपने आप को इस देश का नागरिक साबित करने में नाकों चने चबाना पड़े लेकिन बाग्लादेशियों के पास राशन कार्ड से लेकर निर्वाचन आयोग द्वारा जारी फोटोयुक्त मतदाता परिचय पत्र भी है। यह भी माननीयों की मेहरबानी है। यही वजह है कि पिछले दिनों शासन के निर्देश पर जनपद में हुई जाच में एक भी बाग्लादेशी पुलिस व एलआईयू को नहीं मिला। जबकि जाच करने वाले बखूबी जानते हैं कि कौन यहा का है और कौन बाग्लादेशी।
पच्चीस हजार से अधिक विदेशी बन गए भारतीय आतंकियों के लिए स्लीपिंग माड्यूल का काम करने वाले इन बाग्लादेशियों की संख्या सूत्रों के मुताबिक यहा 25 हजार से ऊपर पहुंच चुकी है। बताते चले कि लोकल आईबी के वर्ष 2003-04 के सर्वे में लगभग 15 हजार बाग्लादेशियों के होने की बात कहीं गई थी। उस समय इनका सबसे बड़ा ठिकाना कैंट विधानसभा क्षेत्र था।
सर्वे में इस बात का भी उल्लेख था कि अधिकतर बाग्लादेशियों के पास पहचान पत्र से लेकर अन्य कागजात उपलब्ध हैं जो स्थानीय जन प्रतिनिधियों द्वारा बनवाए गए हैं। काफी हो हल्ला मचा लेकिन मामला ठंडे बस्ते में चला गया। ऐसा ही कुछ संकटमोचन व कचहरी में बम ब्लास्ट के बाद हुआ। खुफिया विभाग की जाच में कई बाग्लादेशियों की पहचान भी हुई। जिन लोगों ने अपने को पश्चिम बंगाल का बताया उनके वेरीफिकेशन के लिए वहा के स्थानीय प्रशासन से जानकारी मागी गई लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया। नतीजा जनपद में 25 हजार से अधिक बाग्लादेशी भारतीय बनकर आराम से घूम रहे हैं।
साभार - जागरण.कॉम
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