..तो अब साबरमती के संत पर विवाद
लखनऊ । राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सम्मान में गाए जाने वाले गीत..दे दी आजादी हमें खड्ग, बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल..पर भी अब विवाद खड़ा हो गया है। यहां तक कि सार्वजनिक समाराहों में इसे न गाए जाने की अपील की जा रही है और सवाल उठाया है राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े राष्ट्रीय मुस्लिम मंच ने।
मंच के तत्वावधान में इन दिनों जो कार्यक्त्रम आयोजित हो रहे हैं, उसमें शामिल संघ प्रचारकों द्वारा इस गीत को न गाने की अपील की जा रही है। इसके पीछे वजह यह बताई जा रही है कि यह गीत झूठ का पुलिंदा है और आजादी की लड़ाई में सुभाष चंद्र बोस, चंद्रशेखर आजाद, अशफाक उल्लाह और राम प्रसाद बिस्मिल जैसे क्रांतिकारियों की शहादत का मजाक है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक और राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के उप्र-उत्तराखंड के संगठन समन्वयक महिरज ध्वज सिंह ने दैनिक जागरण से बातचीत करते हुए स्वीकार किया, हा, यह सच है, यह गीत हम लोगों को स्वीकार्य नहीं है। इसीलिए हमने सभी स्कूल प्रबंधकों से भी अपील की है कि अगर उन्होंने अपने यहा नियमित प्रार्थना में इस गीत को शामिल कर रखा हो तो इसे कतई हटा दें। दूसरे अवसरों पर भी यह गीत नहीं बजना चाहिए और न ही गाया जाना चाहिए। जहा-जहा हमारे कार्यक्त्रम हो रहे हैं, वहा हम सार्वजनिक अपील कर रहे हैं कि इस गीत का पूरी तरह से बहिष्कार हो।
ऐसा क्यों, बकौल महिरज ध्वज सिंह, आजादी की लड़ाई बगैर खड्ग, ढाल के मिल गई, यह कहना सबसे बड़ा झूठ है। इतिहास को झुठलाने की यह काग्रेसी साजिश है। इस गीत के जरिए आजादी के बाद पैदा हुई पीढ़ी को हम यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि आजादी की लड़ाई गाधी जी ने बगैर खड्ग, ढाल के दिलवा दी। ऐसा करके हम हजारों वीरों की शहादत अपमान कर रहे हैं। उनके बलिदान को नकार रहे हैं।
उन्होंने कहा आजादी की लड़ाई में गाधी जी के योगदान को नाकारा नहीं जा सकता, वह अविस्मरणीय है लेकिन इस गीत को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता।
साभार- Jagran.com
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