करिश्माई व्यक्तित्व के मालिक थे चौधरी चरण सिंह


107वीं जन्म तिथि पर विशेष
ऐसे दौर में जब देश के 60 फीसदी से ज्यादा लोगों का भरण-पोषण करने वाला कृषि क्षेत्र बीमार हो चला है और सरकार की किसान विरोधी नीतियों ने उन्हें खुदकुशी करने तक को मजबूर कर दिया है। ऐसे में किसानों को देश के छठे प्रधानमंत्री रहे चौधरी चरण सिंह जैसे किसी किसान नेता की सख्त जरूरत है।
किसानों के हक की लड़ाई लड़ने में अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर देने वाले चरण सिंह की 107वीं जन्म-तिथि पर उनके करिश्माई और जनहितैषी व्यक्तित्व को बयान करते हुए भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष और अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष डॉ. कृष्णबीर चौधरी ने कहा कि चरण सिंह जी ने ही किसानों को इतनी हिम्मत दी, जिससे वह अपनी आवाज बुलंद कर सकें।
डॉ. कृष्णबीर कहते हैं कि चरण सिंह ने ही किसानों को दिल्ली का रास्ता दिखाया और उन्हें अपनी समस्याओं को देश के सबसे बड़े मंच पर रखने को प्रेरित किया। वह कहते हैं कि चरण सिंह ने किसानों की समस्याओं को काफी करीब से देखा था और शायद यही वजह है कि वह उनकी तमाम हकीकत से वाकिफ थे।
आर्य क्षत्रिय जाट परिवार में 23 दिसंबर 1902 को पैदा हुए चौधरी चरण सिंह ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान ही राजनीति में अपना पहला कदम रख दिया था।
चरण सिंह 1950 के दशक में राष्ट्रीय राजनीति के क्षितिज पर उस वक्त तेजी से उभरे, जब उन्होंने किसानों का पक्ष लेते हुए नेहरू की आर्थिक नीतियों का जबर्दस्त विरोध किया। आपातकाल के दौरान चौधरी चरण सिंह के साथ काम कर चुके वयोवृद्ध सामाजिक कार्यकर्ता अरुण सिंह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद को भी सुशोभित कर चुके चरण सिंह यूं तो राजनीतिक तौर पर काफी भाग्यशाली रहे, लेकिन 1977 में जब लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने देश के प्रधानमंत्री पद के लिए मोरारजी देसाई को पसंद किया, तो उन्हें काफी निराशा हाथ लगी।
चरण सिंह को भारतीय गणतंत्र का छठा प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला। उन्होंने 28 जुलाई 1979 से लेकर 14 जनवरी 1980 तक देश की बागडोर संभाली। अरुण सिंह ने बताया कि उनके प्रधानमंत्रित्व काल में कभी भी लोकसभा का सत्र नहीं हुआ।
सबसे दिलचस्प तो यह रहा कि उनके कार्यकाल में जिस दिन लोकसभा का सत्र शुरू होने वाला था उससे महज एक दिन पहले कांग्रेस पार्टी ने उनकी ‘भारतीय लोकदल’ सरकार से समर्थन वापस ले लिया।
वर्ष 1987 में अपनी मौत से पहले तक संसद में वह अपनी पार्टी ‘लोकदल’ की बागडोर संभालते रहे। चरण सिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र चौधरी अजित सिंह उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी बने।
चौधरी चरण सिंह को एक किसान नेता के तौर पर मान्यता देते हुए ही दिल्ली में उनकी समाधि बनायी गयी और इसका नाम ‘किसान घाट’ रखा गया


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