मैं अयोध्या हूं.पाबंदियों में जकड़ी
अयोध्या [अजय सिंह]। मैं अयोध्या हूं। वही अयोध्या जो समय-समय पर विदेशी आक्रांताओं के हमलों के बावजूद भी वजूद बचाने में कामयाब रही। इतिहास की तवारीख में मेरे संघर्षो की अनेक सच्ची कहानियां भी दर्ज हैं। हिंदुओं के लिए रामलला, हनुमंतलाल और नागेश्वरनाथ जैसे तीर्थ मेरे ही आंगन में हैं। वहीं मुस्लिमों के पैगंबरों, जैनियों के तीर्थकरों व सिखों के धर्मगुरुओं का केंद्र भी। इन सबके बावजूद मेरे वजूद पर संकट का साया है। यह संकट किसी विदेशी आक्रांता के कारण नहीं बल्कि सियासी दांवपेंच के कारण बीते दो दशक में उभरे मंदिर-मस्जिद मुद्दे की वजह से है। कई प्रतिबंधों ने मेरे महात्म्य को कारागार में तब्दील कर दिया है। छह दिसम्बर 1992 को विवादित ढांचा ढहाये जाने के बाद शुरू हुए प्रतिबंधों का दायरा रफ्ता-रफ्ता बढ़ता ही जा रहा है। ढांचा ध्वस्त होने के बाद सरकार ने मेरे एक अहम हिस्से को अधिग्रहीत कर लिया। करीब सत्तर एकड़ का दायरा तो लोहे की डबल बैरीकेडिंग से घेर दिया गया। इस कारण उसके भीतर जिनके भी आशियाने, पूजाघर और संस्थान थे, वे बेजान हो गये। एकमात्र रामलला का अस्थायी मंदिर ही ऐसा है जहां आने वाले श्रद्धालुओं की वजह पूरे इलाके की वीरानी टूटती है।
आतंकी खतरे के कारण दिन-ब-दिन बढ़ रहे सुरक्षा घेरे की वजह से कई मंदिर ऐसे हैं जिनमें दर्शनार्थियों से होने वाली आय से भोग-राग तक कार्य नहीं हो पा रहा है। खास तौर पर रामकोट इलाके [अब येलोजोन], वहां स्थित कोपभवन, रंगमहल, कौशल्या भवन, फकीरे राम मंदिर, लवकुश मंदिर, बाल्मीकि आश्रम व बाल्मीकि भवन मंदिरों के सामने अस्तित्व बचाने का संकट है। इस इलाके में व्यवसाय, कारोबार दम तोड़ चुका है।
रोजगारी दिनभर दुकान सजाये ग्राहकों का इंतजार करते रहते हैं बोहनी होने तक का संकट है। लवकुश मंदिर के महंत रामकेवल दास कहते हैं कि 90 के दशक तक अयोध्या ऐसी नहीं थी। मंदिरों में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता था। अब तो दो-चार श्रद्धालु ही रोज आते हैं। वे कहते हैं कि शिष्यों से मिलने वाली मदद न हो तो मंदिर का खर्च चलना मुश्किल है। खर्च का इंतजाम करने के लिए बाहरी जिलों में जाना पड़ता है।
रामकोट परिसर में श्रृंगार और आडियो-वीडियो कैसेट की दुकान चलाने वाले अब्दुल रहमान पूरे इलाके की नाकाबंदी से खासा आहत हैं। रत्नों का पुश्तैनी कारोबार करने वाले साकेत शरण मिश्र कहते हैं कि रामकोट इलाका ऐसा क्षेत्र हैं, जहां रात में यदि कोई बीमार हो जाय तो अस्पताल ले जाने के लिए कोई साधन नहीं मिल सकता। मोबाइल की दुकान करने वाले संतोष कुमार उपाध्याय कहते हैं कि कहीं भी घटना हुई या कोई अफवाह उड़ी, हनुमानगढ़ी चौराहे से टेढ़ी बाजार तक का इलाका सुरक्षा घेरे में जकड़ दिया जाता है।
साभार - जागरण डॉट कॉम
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