मुंबई का हमला एक नया भयावह अध्याय


भारत के शहरों के लिए आतंकवादी हमला कोई नई बात नहीं है. भारत में आये दिन ऐसे हमले होते रहते हैं और हमारी सरकार हाथ में हाथ धरे बैठे रहती है. यही हमला अगर फिलिस्‍तीन ने इजराइल पर किया होता तो फिलिस्‍तीन को उसकी औकात इजराइल कब की बता दी गयी होती. हमारे देश के बडे शहर जैसे दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद से लेकर हैदराबाद ऐसे हमले झेलते आ रहे हैं. मुंबई के 26 नवंबर का हमला पिछले हमलों से न सिर्फ़ बड़ा है बल्कि दूसरे हमलों से अलग भी है कि हमलावरों सिलसिलेवार टाइम बम धमाकों की जगह आमने-सामने की लड़ाई छेड़ दी है. और ऐसा पहली बार हुआ है कि हमला भारत में हुआ और हमलावरों से उसके आकाओं से बातचीत होती रही जो पाकिस्‍तान में बैठे थे.
इससे पहले सिर्फ़ एक बार ऐसा हमला हुआ था जब आतंकवादियों ने भारतीय संसद को निशाना बनाया था. उसमें भी कई पुलिसकर्मी मारे गये थे.
मुम्‍बई के ताज होटल पर किया गया हमला एक सोची समझी रणनीति का नतीजा था. पूरे एक साल बाद गिरफतारी हुई जिसमें हेडली और राणा का नाम सामने आ रहा है.
इस तरह के आमने-सामने के हमले कश्मीर में 1999 से लेकर 2003 के बीच बहुत हुए हैं, इन हमलों में दो लोग सेमी ऑटोमैटिक राइफ़लों और हथगोलों से लैस होकर आते हैं, इसे फ़िदायिन टेकनीक कहा जाता है.
ऐसे हमलों में हमलावरों के जीवित बचने के आसार नहीं होते हैं और उनका लक्ष्य अधिक से अधिक जानें लेने का होता है.
ऐसी मुठभेड़ें अक्सर 24 से लेकर 72 घंटे तक चलती हैं, ज़्यादातर मामलों में स्थिति जटिल हो जाती है क्योंकि हमलावर जिन इमारतों में घुसते हैं वहाँ आम नागरिकों के फँसे होने के कारण जवाबी कार्रवाई में समस्याएँ आती हैं.
दिलचस्प बात है कि फ़िदायीन हमले हिज़बुल मुजाहिदीन जैसे कश्मीरी गुट नहीं करते बल्कि यह पाकिस्तानी चरमपंथी संगठनों की तकनीक है.
इस तरह के फ़िदायीन हमले जिस संगठन ने सबसे ज्यादा किए हैं वह है पाकिस्तान स्थित लश्करे तैबा जिसका गठन पाकिस्तानी धार्मिक गुटों ने मिलकर किया था. लश्कर ने इक्का-दुक्का कश्मीरियों को भी फ़िदायीन दस्ते में शामिल किया लेकिन ज्यादातर फ़िदायीन हमलावर पाकिस्तानी ही थे जिन्होंने चोरी-छिपे नियंत्रण रेखा पार की थी.
कश्मीर में फ़िदायीन हमले धीरे-धीरे समाप्त हो गए लेकिन मुंबई में उनका इस तरह दोबारा प्रकट होना बहुत डरावना है क्योंकि महानगरों में जान-माल के नुक़सान की आशंका कहीं बहुत अधिक है.
तकनीक
मुंबई की घटना ने एक नए भयावह अध्याय की शुरूआत कर दी है जो भीड़भाड़ वाले महानगरों में अंधाधुंध गोलीबारी और हथगोलों के हमलों की आशंका में जीने को मजबूर करेगी.
ऐसे हमलों से निबटना पुलिस के बूते की बात नहीं है
रेलों में फटने वाले बम आम तौर पर ग़रीबों और मध्यवर्गीय भारतीयों की जान लेते थे लेकिन अब पाँच सितारा होटलों पर हमला करके हमलावरों ने विदेशी नागरिकों और भारतीय अमीरों को भी निशाने पर ले लिया है.
जैसी रिपोर्टें सामने आ रही हैं कि हमलावरों ने ख़ास तौर पर अमरीकियों और ब्रितानियों की तलाश की, अगर ये सच है तो इसका मतलब यह लगाया जा सकता है कि ये भारत की नीतियों से नाख़ुश मुसलमान नहीं हैं बल्कि ऐसे आतंकवादी हैं जो दुनिया में हड़कंप मचाना चाहते हैं.
इन हमलावरों को 'चंद सिरफिरे' कहकर खारिज करना सबसे आसान काम है लेकिन यह सच यही है कि ये पूरी तरह से प्रशिक्षित ख़तरनाक लोग थे और इनके सरगना अनुभवी 'टेरर ऑपरेटर' हैं.
हमले में एक बात साफ़ दिखती है कि हमले की साज़िश इस तरह रची गई थी कि पूरी दुनिया की मीडिया की सुर्खियाँ मिलें.
यह कुछ सिरफिरों की अंधाधुंध गोलीबारी नहीं थी कि बल्कि महानगरों को युद्धभूमि बनाने की सोची-समझी चाल का हिस्सा है.


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