फांसी मत लटकाओ, फांसी पर लटकाओ


नई दिल्ली। संसद पर हमले के षड्यंत्रकारी मुहम्मद अफजल को फांसी देने में हो रहे विलंब पर गहरा रोष व्यक्त करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ऐसे मामलों की दया याचिकाओं के निपटारे की समय सीमा निर्धारित करने की मांग की है।

संघ ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 72 में राष्ट्रपति को इस संबंध में विशेष और असीमित अधिकार दिए गए हैं। राष्ट्रपति द्वारा दया याचिका विचारार्थ स्वीकार कर लिए जाने के बाद उसके निपटारे की कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है।

दया याचिका के निपटारे की समय सीमा तय नहीं किए जाने की आलोचना करते हुए संघ के मुखपत्र पांचजन्य में कहा गया है, राष्ट्रपति महोदया, फांसी मत लटकाओ, फांसी पर लटकाओ, फांसी पाए अपराधी सरकार की संपत्ति नहीं हैं।

इसमें कहा गया, दया याचिका के निपटारे की समय सीमा निर्धारित नहीं होने के कारण उसका निपटारा होने तक फांसी नहीं दी जा सकती। ऐसे में न सुप्रीम कोर्ट उन पर दबाव डाल सकता है, न ही सरकार। पर वास्तविकता यह है कि राष्ट्रपति दया याचिका को सरकार यानी गृह मंत्रालय के पास सुझाव के लिए भेज देते हैं। यहीं से शुरू हो जाता है फांसी का राजनीतिकरण'।

उधर, वरिष्ठ अधिवक्ता उज्जवल निकम ने कहा कि फांसी की सज़ा पर तामील नहीं करना या उसे टालना अपराधियों के हौसला बढ़ाने के समान है। मृत्युदंड इसलिए दिया जाना ज़रूरी है कि लोगों में अपराध करने की प्रवृत्ति कम हो। उनमें अपराध करने के प्रति भय पैदा हो।

दूसरी तरफ, सामाजिक कार्यकर्ता और प्रसिद्ध लेखिका अरुंधति राय ने निकम की दलील से असहमति जताते हुए अफजल ही नहीं, किसी को भी मृत्यु दंड देने का विरोध करते हुए कहा कि वह इस सज़ा के ही खिलाफ हैं। उन्होंने कहा कि इसके अलावा अफजल के पूरे मामले में पक्के सुबूतों का अभाव है। इसलिए ऐसे व्यक्ति को तो फांसी के फंदे पर लटकाना ही नहीं चाहिए जिसके बारे में ठोस साक्ष्य नहीं हों।

संघ ने कहा, गृह मंत्री पी चिदंबरम ने बड़ी चालाकी से मुस्लिम राजनीति का मोहरा बने अफजल की फांसी को दो और साल के लिए टाल दिया है। वह बोले, राष्ट्रपति के पास लंबित 28 दया याचिकाएं टिप्पणी के लिए गृह मंत्रालय के पास हैं। हम कोशिश करेंगे कि क्रमानुसार प्रतिमाह एक मामले का निपटारा करें। इसमें 22 वें नंबर पर अफजल का मामला है।' यानी उसे 22 महीने तक तो फांसी से बचा ही लिया गया है।

अफजल को चार अगस्त 2005 को फांसी की सज़ा सुनाई गई थी और उसे 20 अक्टूबर 2006 को फांसी के फंदे पर लटकाया जाना था। लेकिन उसे फांसी दिए जाने की तिथि से ठीक एक दिन पहले 19 अक्टूबर 2006 को तत्कालीन राष्ट्रपति डा एपीजे अब्दुल कलाम ने अफजल के परिजनों द्वारा दाखिल दया याचिका विचारार्थ स्वीकार कर ली। उसे फांसी से पूर्व दिए जाने वाला ब्लैक वारंट भी जारी हो चुका था। वह याचिका अभी तक विचारार्थ है।

सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी और पांच बच्चों की हत्या के लिए मृत्यु दंड की सजा पाए मध्यप्रदेश के जगदीश की दया याचिका पर निर्णय में विलंब के बारे में हाल में टिप्पणाी करते हुए कहा कि यह सरकार का कर्तव्य है कि वह दया याचिकाओं पर बिना किसी विलंब के निर्णय करे।

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