लोभ का कीड़ा
किसी गांव में एक धनी किसान रहता था। उसने अपने खेतों में काम करने के लिए कई मजदूर रखे हुए थे। उनमें से कुछ को उसने थोड़ी जमीन भी दे रखी थ
ी, जिस पर वे अपनी मजीर् से फसल बोते थे। उसकी पूरी उपज उस मजदूर की होती थी। इन्हीं मजदूरों में एक ने किसान से मिली जमीन पर अंगूर की बेलें बो दी थीं। इनमें जब अंगूर आए तो वे बहुत मीठे थे। अंगूर की पैदावार इतनी ज्यादा हुई कि वह कुछ अंगूर बाजार में बेच कर कमाई भी करने लगा। उसने सोचा कि यह सब किसान की मेहरबानी से हासिल हुआ है इसलिए उसने एक टोकरा अंगूर किसान को भेंट किया।
इतने मीठे अंगूर खाकर किसान को लालच आ गया। उसने सोचा क्यों न मजदूर से वह जमीन वापस ले ली जाए और उसके बदले उसे दूसरी जगह जमीन दे दी जाए। इस प्रकार सारी अंगूर की बेलें उसकी होगी। उसने ऐसा ही किया। अब वह किसान अपने मजदूर की मेहनत से लगाई हुई अंगूर की बेलों की रात-दिन देखभाल करने लगा। वह उसे खूब खाद-पानी देता, लेकिन अंगूर की बेलें विकसित होने की बजाय और मुरझाने लगीं। और कुछ ही दिनों में वे पूरी तरह सूख गईं। एक दिन वह खेत में उदास बैठा हुआ सूखे अंगूर की बेलों को निहार रहा था कि उसी समय कहीं से एक फकीर वहां आया और उसने किसान की उदासी का कारण पूछा।
किसान ने उसे पूरा वृतांत सुनाया और कहा, 'मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि वही खेत, वही बेलें, खाद-पानी पहले से ज्यादा, फिर भी बेलें सूख क्यों गईं?' इस पर फकीर बोला, 'बेटा, अब इन बेलों में कभी अंगूर नहीं आएंगे क्योंकि इनकी जड़ों में लोभ का कीड़ा लग चुका है। लोभ में आकर तुमने मजदूर की मेहनत का फल मुफ्त में लेना चाहा। यह उसी का परिणाम है।' इसके बाद किसान ने उस मजदूर से माफी मांगी और उसकी जमीन वापस कर दी।
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