तिलक का नाम भी था गांधी हत्या मामले में

आलोक तोमर
डेटलाइन इंडिया
नई दिल्ली :-यह 1948 की बात है। मुंबई के फोन नंबर 60201 से दिल्ली के एक फोन नंबर 8024 पर एक कॉल आई। दिन था 19 जनवरी और समय था 9 बज के 20 मिनट। मुंबई का फोन नंबर विनायक दामोदर सावरकर का था जिन्हें इसी कॉल के आधार पर महात्मा गांधी हत्याकांड में अभियुक्त बनाया गया था और लंदन में बैरिस्टर रहे विनायक दामोदर सावरकर ने अपना मुकदमा खुद लड़ा था। ये दोनो फोन नंबर तत्कालीन संचार मंत्रालय के आदेश पर हमेशा के लिए बंद कर दिए गए थे। हमारे पास इस मुकदमे के जो दस्तावेज उपलब्ध है उसके अनुसार नाथूराम गोडसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का सदस्य कभी नहीं था। खुद सावरकर ने अदालत में अपने बयान में कहा है कि वे गोडसे को अच्छी तरह जानते थे और वह हिंदू महासभा का सदस्य था। संघ से उसका कोई लेना देना नहीं था। सावरकर को पांच फरवरी 1948 को गांधी हत्याकांड के एक अभियुक्त नारायण आप्टे के बयान के आधार पर गिरफ्तार किया गया था। गिरफ्तारी के बाद सावरकर और अन्य अभियुक्तों को किसी भी नियम के विरूद्व एक साथ बिठा कर तस्वीर ली गई थी ताकि इस तस्वीर के आधार पर ही सावरकर को इन अभियुक्तां का साथी बताया जा सके। सावरकर कानून के अच्छे खासे जानकार थे इसलिए उन्होंने मुंबई के तत्कालीन पुलिस कमीश्नर को पहले ही पत्र लिख कर आगाह कर दिया था कि इस फोटोग्राफ का इस्तेमाल उनके खिलाफ सबूत के तौर पर नहीं किया जाए। सावरकर खुद हिंदू महासभा के छह साल तक अध्यक्ष रहे थे। सावरकर ने महासभा के सदस्यों के तौर पर पंडित मदन मोहन मालवीय और भाई परमानंद आदि के नाम भी बताए थे और कहा था कि हिंदू महासभा के संस्थापकों में से कई कांग्रेस के अध्यक्ष तक रह चुके हैं। मुकदमे में नाथूराम गोडसे को बाकायदा पंडित कहा गया था। जिस अखबार केसरी को महात्मा गांधी के खिलाफ हत्या की मुहिम चलाने का जिम्मेदार बताया गया है उसके संस्थापक संपादक लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक को उनकी मृत्यु के बाद भी इस मामले में अभियुक्त बनाया गया था मगर बाद में निंदा के डर से पुलिस ने ही अभियुक्तों की सूची से तिलक का नाम हटा दिया था। इसी मुकदमें में यह भी जाहिर हुआ कि खुद सावरकर ने महात्मा गांधी को पत्र लिख कर अपनी जान की सुरक्षा करने की सलाह दी थी और इस संबंध में एक पत्र तत्कालीन गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को ही लिखा था। इस बात के पर्याप्त सबूत हैं कि श्री पटेल ने जवाहर लाल नेहरू और खुद महात्मा गांधी से इस संबंध में बातचीत की थी और इसी बातचीत के आधार पर गांधी जी के विरोध के बावजूद सादी वर्दी में उनके लिए सुरक्षा कर्मचारी तैनात किए गए थे।


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