सेंसेक्स और भारतीय अर्थब्यवस्था
वर्त्तमान समय में पूरी दुनिया के संसेक्स का हल खस्ता है, समूची दुनिया आर्थिक मंदी से उबरने की कोशिश कर रही है | भारत भी इससे अछुता नहीं है | इस मंदी का सीकर भारत भी हुआ, परन्तु यह सच नहीं है की भारतीय अर्थब्यवस्था सेंसेक्स पर निर्भर है जब बाजार में शेयरों के दाम गिरते है तो चारो तरफ है तौबा मच जाती है | कुछ तो यह भी अनुमान लगा लेते हैं की अब महंगाई बढेगी या घटेगी, चुकि भारत कृषि प्रधान देश है भारत की आधी से भी ज्यादा लोग खेती करते हैं| फिर भी हम सेंसेक्स का रोना रोते हैं|
आपको जानकार आश्चर्य होगा की 96 प्रतिशत अर्थब्यवस्था का सेंसेक्स से कुछ लेना देना नहीं है| जब सेंसेक्स 15 हज़ार का आकडा पार करती है तो देश का वित्त मंत्रालय, उधोग जगत और अर्थशास्त्री इस बदत से फूले नहीं समाते हैं| किन्तु नौजवानों में बढती बेरोजगारी, कुंठा एवं किसानो द्वारा की जा रही आत्महत्या का उत्तर नहीं दे रहे हैं| यह भारतीय अर्थब्यवस्था का कला सच हैं | मजबूत अर्थब्यवस्था का लाभ सबको नहीं मिलता ? यह सवाल देश का किसान, पढ़े - लिखे युवा वर्ग और गरीब मजदूर पुच रहा हैं|
वर्त्तमान में देश के सकल घरेलु उत्पाद में 23 प्रतिशत भागीदारी कृषि की हैं | 51.75 प्रतिशत सेवा क्षेत्र की है | जिसमे परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य और डाक सेवा आदि शामिल हैं |
लगभग 21 प्रतिशत भागीदारी लघु उधोगो की हैं | यानि देखा जाये तो सिर्फ 4 प्रतिशत भागीदारी सेंसेक्स की हैं | अर्थात वित्‍त मंत्रालय और योजना आयोग मात्र 4 प्रतिशत बडे उधोगों की मजबूती जो सेंसेक्‍स बाजार में रहते है को देश की मजबूती देश को गलत दिशा देने का प्रयत्‍न कर रहे हैं, जिनके कारण यह विरोधाभास हो रहा है.
आज भी चारों तरफ चर्चा सिर्फ बडे उधोगों को नहीं. 15 अगस्‍त को प्रधानमंत्री जी यह कहते है कि देश को एक और हरितक्रांति की आवश्‍यकता है.परन्‍तु यह कब और कैसे होगा यह पता नहीं भारत का 75 प्रतिशत भाग सूखे से जूझ रहा आजादी से लेकर आज तक सिर्फ वायदे ही किये गये. नहर परियोजना खूब बनी लेकिन धरातल पर नहीं आये. आज भी सबसे ज्‍यादा आत्‍महत्‍या किसी देश का किसान करता है तो वह है भारत. भारत का आर्थिक राजधानी कहे जाने वाला महाराष्‍ट के विदर्भ के किसान आज भी आत्‍महत्‍या करने को मजबूर है. अगर आज दलहन के दामों में तेजी आ रही है. तो इसका जिम्‍मेदार सेंसेक्‍स नहीं है इसका जिम्‍मेदार हमारा सरकारी तंत्र है. सरकार ने आज कहा है कि चीनी और चावल की कमी से देश को जुझना पड सकता है समूची अर्थव्‍यवस्‍था सेंसेक्‍स की ओर मुंह उठाये खडी ताक रही है. शायद कोई चमत्‍कार हो जाये, लेकिन इससे आम जनता को काई फायदा नहीं होने वाला है. इसलिए सरकार को अब गहराई से सोचने की आवश्‍यकता है. विशान रणनीति ही नहीं बनानी चाहिए बल्‍कि उसपर काम भी करनी चाहिए जिससे देश का समुचित विकास हो सके

आलेख चंदन कुमार


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