राम जन्म भूमि की फाइल खोजने के आदेश
उत्तर प्रदेश में राज्य प्रशासन ने अयोध्या में धार्मिक ज़मीन को लेकर हिंदुओ और मुसलमानों के बीच चल रहे विवाद के संबंधित सात अहम दस्तावेज़ों की तलाश के लिए बड़ी कार्रवाई शुरू की है.
ये सातों अहम दस्तावेज़ ग़ायब हैं. शुक्रवार को राजधानी लखनऊ में पत्रकारों से बातचीत में विशेष गृह सचिव राजेंद्र प्रसाद मिश्र ने पत्रकारों को बताया कि सभी संबंधित विभागों को एक सर्कुलर जारी कर दिया गया है.
उन्होंने बताया कि वरिष्ठ अधिकारी इस काम की नियमित प्रगति पर निगरानी रखे हुए हैं. दिसंबर 1992 में इसी विवादित ज़मीन पर बनी बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था.
हिंदू इस ज़मीन को भगवान राम की जन्मभूमि बताते हैं लेकिन मुसलमान इस दावे को ग़लत मानते हैं. इस विवादित के कारण देश में कई जगह दंगे हो चुके हैं, जिनमें बड़ी संख्या में लोग मारे गए हैं.
मामला
दिसंबर 1949 से यह मामला अदालत के विचाराधीन है. उस समय हिंदुओं ने कथित रूप से भगवान राम की मूर्ति वहाँ रख दी थी. अब विवादित क्षेत्र के आसपास हमेशा कड़ी सुरक्षा रहती है.
अदालत के बार-बार कहने के बावजूद अभी तक राज्य सरकार इन दस्तावेज़ों को पेश नहीं कर पाई है. हाल ही में अदालत ने राज्य के मुख्य सचिव अतुल कुमार गुप्त और गृह सचिव कुँवर फतेह बहादुर को बुलाकर फटकार लगाई.
अदालत ने दोनों अधिकारियों को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर जल्द ही दस्तावेज़ पेश नहीं किए गए तो इसे अदालत की अवमानना मानते हुए उन्हें कड़ी सज़ा दी जाएगी.
इन दस्तावेज़ों में एक टेलीग्राम भी शामिल है, जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने उस समय उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री रहे गोविंद वल्लभ पंत को भेजा था.
इस टेलीग्राम के बारे में जो जानकारी आई है, उसके मुताबिक़ उसमें नेहरू ने लिखा था, "मैं अयोध्या की घटनाओं से चिंतित हूँ. उम्मीद करता हूँ आप निजी रूप से इस मामले को देखेंगे. वहाँ ख़तरनाक उदाहरण पेश किए जा रहे हैं, जिसके नतीजे बुरे होंगे."
पत्राचार
छह अन्य दस्तावेज़ राज्य सरकार और ज़िला प्रशासन के बीच हुए पत्राचार से संबंधित हैं. इन पत्रों के बारे में जानकारी किताबों में छप चुकी है.
इन पत्रों से यह भी पता चलता है कि तत्कालीन ज़िलाधीश केके नायर ने भगवान राम की मूर्ति हटाने के राज्य सरकार के निर्देशों को ठुकरा दिया था क्योंकि उन्हें डर था कि इससे ख़ून-ख़राबा हो सकता है.
यह भी माना जाता है कि केके नायर और उनकी पत्नी शकुंतला नायर बाबरी मस्जिद पर जबरन क़ब्ज़ा करने के लिए गुपचुप तरीक़े से हिंदुओं की मदद कर रहे थे.
बाद में नायर दंपत्ति दक्षिणपंथी हिंदू संगठन जनसंघ में शामिल हुए और फिर सांसद भी बने.
दावा
अयोध्या की विवादित ज़मीन पर मुसलमानों के दावे के लिए लड़ रहे सुन्नी वक़्फ़ बोर्ड अपना दावा साबित करने के लिए इन दस्तावेज़ों की मांग करता रहा है.
वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद गिरा दी गई थी
दूसरी ओर इस मामले में हिंदुओं की ओर से लड़ रहे निर्मोही अखाड़े का कहना है कि क़ानून के मुताबिक़ ये दस्तावेज़ अदालत में मान्य नहीं.
लेकिन अदालत राज्य सरकार से कहती रही है कि इन दस्तावेज़ों को पेश किया जाए ताकि इस विवाद के बारे में अहम जानकारी मिल सके.
अदालत ने अगली सुनवाई की तारीख़ छह जुलाई रखी है. राज्य के वरिष्ठ अधिकारियों को लगता है कि अगर दस्तावेज़ नहीं मिले तो अदालत कड़ी कार्रवाई कर सकती है
साभार - बीबीसी हिंदी
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