सावरकर के लेखन का सही मूल्याïकन हो


नई दिल्ली। प्रखर राष्ट्रभक्त एवं क्रांतिकारी विनायक दामोदर सावरकर का जीवन भले ही विवादों से घिरा रहा हो, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि उनके लेखन विशेष कर उनके इतिहास लेखन के सही ढंग से मूल्यांकन की जरूरत है।

विशेषज्ञों के अनुसार सावरकर ही एकमात्र ऐसे लेखक हैं जिन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बारे में प्रामाणिक तथ्य एकत्र कर पहली बार भारतीय दृष्टिकोण से इतिहास लेखन का काम किया। हो सकता है कि उनके निष्कर्षो से कई इतिहासकार सहमत नहीं हो, लेकिन उन्होंने जिन तथ्यों के आधार पर लिखा, उन्हें नकारा नहीं जा सकता।

राजनीतिक एवं सामाजिक विचारक गोविंदाचार्य के अनुसार दरअसल वीर सावरकर ही वह पहले व्यक्ति थे जिन्होंने 1857 के संघर्ष को गदर मानने से इनकार कर दिया था और इसे देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की संज्ञा दी थी। उनके अनुसार सावरकर का बहुमुखी व्यक्तित्व था और उन्होंने 14 वर्ष जेल की सजा काटी। गोविंदाचार्य ने खास बातचीत में कहा कि सावरकर एक प्रखर विचारक थे और उन्होंने पहली बार हिंदुत्व तथा राष्ट्रवाद के बारे में विस्तार से लिखा। उनके हिंदुत्व की परिकल्पना कई मायने में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा से काफी अलग थी।

गोविंदाचार्य ने कहा कि सावरकर ने सनातन भारतीयता के प्रवाह को स्वीकार किया था। उनका मानना था कि हिंदुत्व के जरिए ही राष्ट्र को एकजुट रखा जा सकता है। कई मामलों में उनके हिंदुत्व की परिकल्पना काफी उग्र थी।

सामाजिक मामलों के विशेषज्ञ सुभाग गताड़े के अनुसार सावरकर का अभी तक सही मूल्यांकन नहीं किया गया है। उन्होंने युवावस्था में काफी बहादुरी दिखाई और उस समय तक वह हिंदू-मुस्लिम एकता की बात करते थे। गताड़े के अनुसार गांधी हत्याकांड में उनकी विवादास्पद भूमिका, संविधान का विरोध, राष्ट्रवाद और उग्र हिंदुत्व संबंधी उनके विचारों के कारण सावरकर का एकांगी मूल्याकंन हुआ है। उन्होंने कहा कि इस बात की संभावना भी हो सकती है कि अंडमान जेल में लंबे समय तक रहने और यातनाएं सहने के कारण सावरकर के विचारों में उग्रता बढ़ी हो और उन्होंने उग्र हिंदुत्व का समर्थन करना शुरू कर दिया हो।

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े राम माधव के अनुसार भारत की स्वतंत्रता में वीर सावरकर का अमूल्य योगदान रहा है। उन्होंने देश के भीतर और बाहर रहते हुए देश की आजादी के लिए न केवल क्रांतिकारी गतिविधियों को चलाया, बल्कि मदनलाल ढींगरा जैसे कई देशभक्तों के वह प्रेरणास्रोत थे। राम माधव के अनुसार सावरकर ने एक राष्ट्रभक्त और एक क्रांतिकारी के दृष्टिकोण से इतिहास लिखा। उनके विचारों से आप सहमत या असहमत हो सकते हैं, लेकिन उनके लेखन खासकर 1857 के संघर्ष के बारे में उनकी रचनाओं को आप अनदेखा नहीं कर सकते।

यह पूछे जाने पर कि उग्र हिंदुत्व की परिकल्पना सावरकर ने कहां से ली राम माधव ने कहा कि वह तिलक, एनी बेसेंट जैसे तमाम नेताओं से प्रभावित थे। इसके अलावा वह स्वयं एक प्रखर विचारक थे और उन्होंने यह महसूस किया कि राष्ट्र को एकजुट रखने के लिए हिंदुत्व के विचार को बढ़ावा देना जरूरी है। उन्होंने कहा कि सावरकर ने संघ के संस्थापक केशव हेडगेवार के समक्ष यह साफ कहा था कि वह संघ की हिंदुत्व संबंधी विचारधारा से सहमत नहीं हैं।

स्वतंत्रता इतिहास पर कई पुस्तकें लिख चुके इतिहासकार सर्वदानंदन का मानना है कि सावरकर शुरू में तो स्वातं˜य वीर थे, लेकिन काले पानी की सजा से उनका हौंसला टूट गया था और इसी वजह से उन्होंने अंग्रेजों से माफी मांग ली, जो उनके जीवन का काला अध्याय है। कुछ इतिहासकारों का यह भी मानना है कि सावरकर जेल में दूसरे साथियों को तो भूख हड़ताल के लिए प्रेरित करते थे, लेकिन खुद भूख का अवसाद नहीं सह पाते थे।

28 मई 1883 को जन्मे सावरकर की किशोरावस्था में ही उनके माता-पिता का निधन हो गया था। युवावस्था से ही वह क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए। बाद में वह जब उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए तो वहां भी उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियां जारी रखीं। अभिनव भारत सोसाइटी के जरिए उन्होंने विदेश में क्रांतिकारियों को एकजुट किया।

ब्रिटिश सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर जहाज से भारत भेजा। रास्ते में वह सुरक्षाकर्मियों को चकमा देकर समुद्र में कूद पड़े और तैरते हुए मर्सिलेस के तट पर पहुंचे। हालांकि बाद में उन्हें फिर पकड़कर अंग्रेज सरकार के हाथों में सौंप दिया गया। भारत में उन पर मुकदमा चला और उन्हें लंबे समय तक अंडमान जेल में सजा काटनी पड़ी। बाद में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के मामले में भी उन पर मुकदमा चलाया गया हालांकि वह छूट गए। उन्होंने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और काले पानी की सजा सहित विभिन्न विषयों पर पुस्तकें लिखीं। सावरकर का निधन 26 फरवरी 1966 को हुआ।
Through - Dainik Jagran.

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