संतों को फिर अपनी लगने लगी भाजपा
लखनऊ [जागरण ब्यूरो]। हालात ने भाजपा व सन्तों को दुबारा एक-दूसरे के करीब आने पर मजबूर कर दिया। पिछले लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की कार्यशैली पर तमाम नाक-भौं सिकोड़ने वाले संत-धर्माचार्य गैर-भाजपा सरकारों के शासन में पहले जयेन्द्र सरस्वती, और फिर साध्वी प्रज्ञा भारती व अमृतानंद का हश्र देखकर यह मानने पर पर मजबूर हो गए कि भाजपा जैसी भी है, बाकी दलों से बेहतर है।
संतों की मौजूदा मनोदशा मुंबई में आयोजित 'धर्म रक्षा मंच' के अधिवेशन की जुटान से समझी जा सकती है, जिसमें देश की ज्यादातर धर्मपीठों, पंथों और अखाड़ों के महन्त शामिल हुए। अधिवेशन में लोकसभा चुनाव में सन्तों की भूमिका पर गहन विचार-विमर्श के बाद तय हुआ कि सन्त समाज खुलकर भाजपा का साथ देगा। सूत्रों के मुताबिक, कुछ सन्तों ने राजग शासनकाल की 'कड़वी यादें' कुरदने की कोशिश की, लेकिन बाकी सन्तों ने यह तर्क देकर उन्हें चुप करा दिया कि तब भाजपा दूसरे दलों की मदद से सरकार चला रही थी। राम मन्दिर, गोरक्षा, गंगारक्षा, धर्मान्तरण व आतंकवाद जैसे मुद्दों पर हिन्दुओं की अपेक्षानुसार नीति निर्धारित कराने के लिए जरूरी है भाजपा अपने बूते सत्ता में आए। लोकसभा चुनाव में संत इसके लिए देशवासियों को जागरूक करने का हर प्रयास करेंगे। इसी दृष्टि से 20 फरवरी से 20 मार्च तक देश भर में हिंदू जागरण अभियान चलाने का कार्यक्रम है।
धर्म रक्षा मंच के संयोजक ज्ञानदास ने 'जागरण' से कहा कि संत सत्ता परिवर्तन के पक्ष में हैं। जो सरकार 'हिंदू आतंकवादी' जैसी संज्ञा प्रचलित करे, उसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। गैर-भाजपा सरकारें सन्त व साध्वियों को 'आतंकवादी' साबित करने पर आमादा हैं। ऐसी सरकार न राम मंदिर बनवा सकती है, न समान नागरिक संहिता लागू करने का साहस जुटा सकती है। भाजपा एकमात्र पार्टी है, जो इन तमाम मुद्दों पर खुली राय न सिर्फ रखती है, बल्कि जाहिर भी करती है।
धर्म रक्षा मंच के मुंबई अधिवेशन में महंत ज्ञानदास के अलावा राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपालदास, डा.राम विलास वेदान्ती, स्वामी चिन्मयानंद, साध्वी ऋतम्भरा, जयेन्द्र सरस्वती, वासुदेवानंद सरस्वती, सत्य मित्रानंद, युगपुरुष परमानंद, रमेश भाई ओझा, आशाराम बापू, मदनदास देवी, अशोक सिंहल, प्रवीण भाई तोगड़िया व पुरुषोत्तम नारायण सिंह शामिल थे।
साभार - दैनिक जागरण
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