सर पर तो भारत ही होगा |
स्वामी रामतीर्थ अमेरिका में वहां के विद्वानों एवं जनता द्वारा खूब सम्मानित हुए | भारतीय धर्म एवं संस्कृति का प्रकाश बिखेरते बिखेरते ढाई वर्ष के वहां के निवास में जो प्रचुर धनराशी उन्हें भेट में मिली थी, वह सब स्वामी जी ने अन्य देशो के भूखो एवं गरीबो में बाँट दी, अपने लिए कुछ नही रखा |
पर भारत पहुचते पहुचते एक अमरीकी पोषक उनके पास रह गई | एक दिन वे उस पोषक को पहनने लगे | कोट पैंट को तो उन्होंने अपने शरीर से लटका भर लिया और अमरीकी जूते पांव में डालकर खड़े हो गए | किंतु जो एक कीमती टोप उन्हें अमरीकी में मिला था, उसे उन्होंने सर पर धारण नही किया उसके स्थान पर अपना भारतीय साफा उन्होंने लपेट लिया |
किसी ने पूछा - 'आपने इतना सुंदर हैट तो पहना ही नही' | बड़ी मस्ती से उन्होंने उत्तर दिया - राम के सर माथे पर तो हमेशा महान भारत ही रहेगा, अम्रीका जरुर पाँवों में पड़ा रह सकता है | इतना कहकर वे नीचे झुके और मातृभूमि की मिटटी उठाकर माथे पर लेप ली |
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