:|:|: सुहाग नही स्वदेशी :|:|:

गुदरी के लाल भारत के दुसरे प्रधानमंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री से सभी परिचित है | वे स्वयं ही स्वदेशी और स्वालंबन के कट्टर समर्थक थे ही, उनकी अर्धांगिनी ललितादेवी जी इस मामली में उनसे रत्ती भर भी कम नही थी | ललिता जी एक बार बाजार गई | वे बड़ी सुसज्जित दुकान में दाखिल हुई | एक एक कर वह अपनी जरुरत की वस्तु देखने लगी क्योंकि वस्तु खरीदना उनके लिए सम्भव नही हो रहा था क्योंकि दुकान में विदेशी माल ही भरा पड़ा था, ललिता जी दुकान से निकलने लगी तो दुकानदार ने पूछा बहनजी आपको क्या चाहिए? ललिता जी बोली मुझे लेना तो बहुत कुछ था किंतु आपकी दुकान में केवल विदेशी वस्तुए ही दिखाई पड़ रही है | दुकानदार की नजर ललिता जी की चूड़ी पर पड़ गई , दुकानदारी लहजे में वह बोला बहनजी आपने जो चुडिया पहनी है वह विदेशी नही है ? ललिता जी के धयान में आ गया की भूल से ये चुडिया आ गई है | उन्होंने चुडिया उतारी और दुकानदार के सामने ही टुकड़े टुकड़े कर उन्हें फेक दिया |

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