इलेक्ट्रोनिक मीडिया का काम समझ में नहीं आता

आजकल एक चैनल दिनभर ब्रकिंग न्यूज ही दिखाता रहता है. समझ में तो ये नहीं आता कि ये न्यूज चैनल 'समाचार किसे कहते हैं. समय समय पर मीडिया के रोल पर सवाल भी उठते रहते हैं. सवाल उठना भी वाजिब है. यहां एक बात ध्यान देने वाली है कि मैं प्रिंट मीडिया की नहीं मैं तो इलेक्ट्रोनिक मीडिया की बात कर रहा हूं. भारत में प्रिंट मीडिया का इतिहास कई दशक पुराना है लेकिन इलेक्ट्रोनिक मीडिया अभी भी शैशवकाल में हैं. इलेक्ट्रोनिक मीडिया हमारे समाज के आइने के समान है. लेकिन पिछले 8 सालों में जितने भी इलेक्ट्रोनिक मीडिया खुले है. उससे तो एक बात साफ है कुछ को छाड़ दे तो सभी का काम पैसा कमाना ही है. आज मीडिया का काम पैसा कमाना ही है. आज मीडिया अपना असल काम ही भूल गई है. सानिया और शोएब की शादी ने जितने न्यूज बटोरे है और इस कंट्रोवर्सी को सभी न्यूज चैनल ने 24 घंटे दिखाया. लेकिन इस बीच दंतेवाड़ा में 80 से ज्यादा जवान शहीद हो गये तो किसी भी न्यूज चैनल ने ऐसी रिपोर्टिंग नहीं कि जैसी की जानी थी. आप ही बोलिए जितने समय में आपने सानिया-शोएब का ड्रामा देखा, जितने उनके बारे में जाना क्या आप दंतेवाड़ा में मारे गए शहीदों के बारे में जान पाए हैं? नहीं ना. मैं स्पष्ट भी कर सकता हूं आप किसी एक शहीद का नाम बताइये आप नहीं बता पायेंगे. आप न्यूज चैनल किसे कहेंगे. उस चैनल को जो भूतों पर भी एक घंटे का स्पेशल एपीसोड चलाते हैं. हद तो तब लगती है जब एक न्यूज चैनल ने अमेरिका के राष्ट्रपति की पत्नी मिशेल ओबामा की स्वास्थ्य यानी सेहत का राज वाला एक अफ्रिकी सेब खोज निकाला फिर क्या दिन भर में 20 बार हमने वो समाचार देखें. हाल ही में अखण्ड भारत का सबसे बड़ा महाकुंभ का समापन हुआ करोड़ों लोग इसमें शामिल हुए. फिर भी इसे सारे मीडिया ने नजर अंदाज किया. थोड़े-थोड़े समाचार और विशेष बुलेटिन को छोड़कर किसी ने इसकी गहराई से आम जनता तक लाने की कोशिश भी नहीं की खैर आम जनता तो जानती है फिर भी दिल्ली में होने वाले कॉमनवेल्थ गेम्स से कई गुणा बड़ा यह कुंभ था बगैर किसी सुख सुविधा के यह कुंभ संपन्न हो गया ओर सफल भी रहा. खबरो का चुनाव कैसे करना है या खबर कौन सी लेनी है यह मीडया अच्छी तरह जानती है. लेकिन शायद विज्ञापन और टीआरपी के पीछे मीडिया भाग रही है. खबर का असर किस पर होता है उसका आप पर या सरकार पर. मीडिया का काम सच उजागर करना है और वो कहां तक सफल हुए है आप ही जानते हैं. लेकिन भारतीय इलेक्ट्रोनिक मीडिया अभी भी सफल नहीं हुई है शहर से गांवों तक मीडिया को जाना होगा. टोना टोटका, जादू, भूत और साधु महात्मा वाले प्रोग्राम को बंद कर असल बिंदू पर आना होगा. 
 -चंदन कुमार साहू

0 टिप्पणियाँ:

Related Posts with Thumbnails

Blog Archive

  © Blogger templates The Professional Template by Ourblogtemplates.com 2008

Back to TOP