आइए, संघ के दरवाजे खुले हैं: भागवत


इलाहाबाद : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने रविवार को लोगों से संघ में शामिल होने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आइए संघ के दरवाजे खुले हैं। जब तक इसकी कार्यप्रणाली को नहीं समझेंगे, इसकी आत्मा को नहीं समझ सकेंगे। संघ का काम अनुभव का है। अनुभव करके ही इसकी कार्यप्रणाली को समझा जा सकता है।
इलाहाबाद के परेड मैदान में काशी प्रांत के संघ समागम को संबोधित करते हुए संघ प्रमुख न केवल 'संघ' की नीतियों को सामने रखा अपितु संघ से जुड़े अपने अनुभवों को भी बांटने का प्रयास किया। संघ की नीतियां सनातन हिंदू संस्कृति की रहीं है। जो त्याग, सहिष्णु व सर्वधर्म समभाव पर टिकी हैं। इसका कट्टरता से कोई वास्ता नहीं। भारतीय संस्कृति कभी यह नहीं सिखाती 'केवल हम सही हैं। बाकी सब गलत।' विश्व बंधुत्व और सर्वधर्मसहिष्णु का ऐसा उदाहरण अन्य किसी संस्कृति में नहीं है।
भागवत ने विदेश नीति से लेकर गृह नीति को निशाना बनाया। पड़ोसी राज्यों से मित्रता का संदेश तो दिया, लेकिन आत्मसम्मान या आत्मरक्षा की कीमत पर नहीं। बढ़ रहे आतंकी खतरों के प्रति चिंता जताते हुए संघ प्रमुख ने कहा कि आतंकवाद विदेशी मूल्यों से प्रेरित है। आतंक का पोषण करने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाना चाहिए। जब तक देश हित व चिंतन सर्वोपरि नहीं होगा, आतंकवाद जैसी समस्याओं से निजात संभव नहीं है।
प्रारंभ में सरसंघचालक का स्वागत परंपरागत ढंग से पूरे सांस्कृतिक परिवेश में हुआ। गणवेश में स्वयंसेवकों ने अनुशासन, शौर्य व समर्पण भाव का प्रदर्शन किया। कार्यक्रम में विहिप के अंतरराष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक सिंघल, पूर्व केन्द्रीय मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी भी मौजूद थे।
साभार:जागरण.कॉम


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