गौशाला में क्यों जन्मे यीशु

ईसाई समुदाय का क्रिसमस पर्व भौतिक और आध्यात्मिक दोनों रूपों में मनाया जाता है। इस समय अनेक लोग गिरजाघरों में या कहीं एकांत में बैठकर बाइबल का पाठ करते हैं और उपवास, प्रार्थना व आध्यात्मिक चिंतन के माध्यम से अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं।
क्रिसमस के समय हर ईसाई परिवार के घर में एक सितारा टंगा होता है, जो चरनी में लेटे नवजात बालक यीशु की ओर इशारा करता है। इस सितारे का क्या अर्थ है?

यीशु के जीवन का रहस्यपूर्ण पहलू उनके जन्म की कहानी के साथ ही प्रकट होना आरंभ हो जाता है। उनका जन्म ईश्वर की विशेष कृपा से एक कुंवारी माता के गर्भ से बेहद गरीबी की दशा में एक गौशाला में हुआ था। अपने जीवन काल में एक बार स्वयं की ओर इंगित करते हुए उन्होंने कहा था, 'लोमड़ियों और आकाश में उड़ने वाली पक्षियों के पास घोंसला और मांदें होती हैं, परंतु मानव पुत्र के लिए सिर छुपाने का कोई स्थान नहीं है।'


यीशु का पूरा जीवन एक घुमक्कड़ फकीर के समान था। अंत में उन्हें क्रूस पर कष्टदायक मृत्यु सहनी पड़ी, मृत्यु के उपरांत उन्हें दफनाने के लिए परिवार के पास एक कब्र भी नहीं थी, उन्हें किसी और की कब्र में दफनाना पड़ा था।

आज आमतौर पर जिस तरह क्रिसमस का त्योहार मनाया जाता है और जितना धूमधड़ाका और दिखावा होता है, उससे तो यही लगता है कि इस त्योहार पर अब गरीबी के बारे में बिरले ही विचार किया जाता होगा। आज लोग क्रिसमस गिफ्ट के लिए महंगी से महंगी वस्तुएं खरीदते हैं। कुछ लोग इसे खचीर्ली छुट्टियों के रूप में बिताते हैं।

ऐसे माहौल में यीशु के जन्म, मृत्यु या दफन के लिए उधार ली गई कब्र पर वे शायद इसलिए विचार नहीं करते, क्योंकि इससे उन्हें लज्जित होना पड़ सकता है। कड़ाके की इन सर्दियों में हम अक्सर सुनते हैं कि असंख्य लोगों के पास रहने के लिए सिर पर छत नहीं है और ठंड के चलते कई बेसहारा लोगों की मृत्यु तक हो जाती है। कई बार नगर प्रशासन ऐसे लोगों को लावारिस मानकर अंतिम संस्कार कर देता है। राह चलते गोद में बच्चों को समेटे कई मातायें हाथ पसारे मिल जाती हैं। कई लोगों के पास पेट भर खाने के लिए भोजन तक नहीं है।

क्या सर्वशक्तिमान ईश्वर अपने पुत्र के जन्म के लिए इससे बेहतर जगह की व्यवस्था नहीं कर सकता था? इसलिए यह सवाल हरेक के मन में पैदा होता है कि आखिर यीशु को एक निर्धन परिवार में ही क्यों जन्म लेना पड़ा और उससे भी बदतर परिस्थितियों में अपना जीवन काट कर अंत में क्रूस पर मर कर, किसी और की कब्र में दफनाया जाना पड़ा?

कारण साफ है। आरंभ से ही यीशु अपने आप को समाज के निर्धनतम तबके से जोड़ना चाहते थे, ताकि लोग गरीबों की समस्याओं को जान सकें और संसार से गरीबी का खात्मा हो सके।

क्रिसमस का वास्तविक अर्थ ही ईश्वर द्वारा अपने इकलौते पुत्र के माध्यम से मानव जाति के साथ, विशेषकर गरीबों के साथ अपना प्रेम बांटना है। इसलिए ईश्वर ने अपने पुत्र के जन्म का संदेश सबसे पहले उन निर्धन चरवाहों को दिया, जो एक ठंडी रात में अपनी भेड़ों की रखवाली करते हुए आग ताप रहे थे।

गौरतलब है कि यीशु के दौर में मछुआरों को अत्यंत हेय दृष्टि से देखा जाता था। यीशु ने यह सब देखते और जानते हुए ही अपने प्रथम शिष्यों का चयन मछुवारों में से किया था। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि ईश्वर को गरीबों और समाज के दबे-कुचले लोगों से विशेष प्रेम है, ताकि उनका उत्थान हो सके। लेकिन चरनी में यीशु के जन्म के पीछे का वास्तविक कारण जानने के बाद भी हम क्या क्रिसमस मनाने के अपने तौर-तरीकों में कुछ बदलाव लाएंगे?
साभार:नवभारत टाइम्‍स.कॉम

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