हरियाली तीज पर हिंडोले में झूलेंगे ठाकुरजी


मथुरा। ब्रज में इन दिनों हरियाली तीज की तैयारियों को अंतिम रूप दिया जा रहा है।
ब्रज मंडल में हरियाली तीज का विशेष महत्व है। इस दिन लोग अपने घरों में झूला बनाकर ठाकुरजीको झुलाते हैं। तीज के गीत गाए जाते हैं। घरों और मंदिरों में विशेष सजावट की जाती है। कुछ मंदिरों में तो ठाकुर जी को सोने के हिंडोलों [झूलों] में झुलाया जाता है। इस अवसर पर ठाकुरजीके दिव्य स्वरूप के दर्शन पाने के लिए देश-विदेश से काफी संख्या में श्रृद्धालु आते हैं। श्रद्धालुओं की भारी तादाद को देखते हुए मथुरा-वृंदावन की यातायात व्यवस्था सुचारु रूप से सुनिश्चित करने के लिए जिला प्रशासन भी तैयारियों में जुटा हुआ है। वृंदावन के विश्वविख्यात ठाकुर बांके-बिहारी मंदिर में केवल एक बार हरियाली तीज के अवसर पर ही ठाकुर जी को सोने व चांदी से बने हिंडोलों में झुलाया जाता है। इस दिन श्रद्धालु को जितने निकट से ठाकुरजीके दर्शन होते हैं, उतने अन्य दिनों में नहीं होते। यह एक मात्र अवसर होता है जब भगवान गर्भगृह से निकलकर जगमोहन के निकट आ विराजते हैं। श्री बांके बिहारी मंदिर के हिंडोले हरियाणा के बेरी गांव निवासी सेठ हरगुलालने बनवाकर 1947में मंदिर को भेंट किए थे। तभी से हरियाली तीज के अवसर पर ठाकुरजीको इन हिंडोलों में झुलाया जाता है। हिंडोलों के निर्माण का इतिहास काफी रोचक है। बनारस से आए कारीगरों ने टनकपुरके जंगलों से मंगाई शीशम की लकडी को दो साल तक सुखाया, ताकि उसमें जरा भी नमी न रहे। उसके बाद हिंडोलों का निर्माण शुरू हुआ। ये हिंडोले इतने मजबूत और भारी हैं कि इनके एक हिस्से को उठाने के लिए छह या सात मजदूरों को लगना पडता है। हिंडोलों को फिट करने का काम आज भी हरगुलालके वंशज ही करते हैं।

वृंदावन के अलावा मथुरा के द्वारकाधीशमंदिर में भी भगवान को स्वर्ण जडित हिंडोलों में झुलाया जाता है।

तीज के मौके पर वृंदावन में ही दक्षिण शैली के सबसे विशाल श्रीरंगनाथमंदिर में भगवान के दर्शन स्वर्ण हिंडोलों में कराए जाते हैं। वहां यह परंपरा एक सदी से भी अधिक समय से निभाई जा रही है। वर्षो मंदिर के प्रबंधक का दायित्व निभा रहे भृगुदत्ततिवारी बताते हैं कि ठाकुर रंगनाथ मंदिर के हिंडोलों का वजन करीब एक कुंतल के बराबर है। वहां हरियाली तीज से लेकर पूर्णमासी तक हिंडोले में भगवान के दर्शन होते हैं।
वृंदावन के अलावा मथुरा के द्वारकाधीशमंदिर में भी भगवान को स्वर्ण जडित हिंडोलों में झुलाया जाता है। मंदिर के सलाहकार राकेश चंद्र चतुर्वेदी बताते हैं कि सौ वर्ष पहले बने इन हिंडोलों की लागत करीब डेढ लाख रुपये आई थी। उस समय सोने की कीमत मात्र 17रुपये तोला थी।
ब्रज में सोने चांदी के हिंडोलों के अलावा राजस्थानी राजा टोडरमलद्वारा बरसाना की पहाडी पर बनवाए गए पत्थर के हिंडोले भी दर्शनीय हैं, जो सबसे प्राचीन हैं। ब्रज के राजा ठाकुर बलदेव के मंदिर में हिंडोले झुलाने के बजाय वास्तविक प्रतिमा के समक्ष हिंडोला रखकर उसके मध्य दर्पण रख दिया जाता है और उसमें पडने वाली अचल प्रतिमा की छवि को झूला झुलाया जाता है।

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