भारतवर्ष को पहली बार हिन्दुस्तान नाम से संबोधित करने वाले गुरु नानक देव

जमशेद्पुर । भारतवर्ष को पहली बार हिन्दुस्तान नाम से संबोधित करने वाले गुरु नानक देव संत बनने से पहले एक गोदाम में प्रबंधक की नौकरी करते थे और उन्होंने गृहस्थ जीवन अपनाते हुए उपासना में मन लगाने की शिक्षा दी है।

नानक के भारत को पहली बार हिन्दुस्तान नाम से संबोधित करने की झलक उनकी इन पंक्तियों से मिलती है जब 1526 में देश पर बाबर के आक्रमण के बाद कहा- खुरासान खसमाना कीआ, हिंदुस्तान डराइआ।

सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मानवता की सेवा करने वाले पहले सिख गुरू नानक राजनीतिक तौर पर बेहद संवेदनशील थे। उनकी राजनीतिक चेतना की झलक उनके विदेशी आक्रमण एवं राजाओं की आलोचना में मिलती है। बाबर के आक्रमण का उन्होंने यह कहकर विरोध किया-एती मार पई करलआणें, तें की दरद न आइआ।

उस समय के राजा लोगों का काफी शोषण करते थे इसलिए उन्होंने उनकी आलोचना की-राजेसींह मुकदम कुते।

गुरु नानक देव का जन्म लाहौर [पाकिस्तान] के नजदीक तलवंडी गांव में हुआ था जिसे अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। सिख ग्रंथों के अनुसार उनका जन्म 1469 में बैसाख [अप्रैल-मई ] महीने में हुआ था। लेकिन उनकी जयंती हर वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। नानक देव का 540वां प्रकाशोत्सव पर्व इस वर्ष 13 नवंबर को मनाया जा रहा है। इस पर्व के तीन दिन पहले से देश भर के गुरुद्वारों में लंगर एवं भजन कीर्तन हो रहा है। क्षेत्रवाद, आडंबर, ईष्र्या-द्वेष एवं अमानवीय कृत्यों से घिरते भारतीय समाज में नानक देव की शिक्षाएं काफी महत्वपूर्ण हो जाती हैं। लुधियाना के गुरुसर सुधार कालेज में प्राध्यापक एवं सिख मामलों के विद्वान डा.राजेंद्र साहिल ने कहा कि आज के समाज को गुरु नानक की शिक्षाओं की सबसे ज्यादा जरूरत है।

प्रो.साहिल ने बताया कि गुरु नानक मानवतावादी हैं, उन्होंने लोगों से गृहस्थ जीवन का त्याग करने की बजाय गृहस्थ जीवन बिताते हुए एवं सांसारिक कर्तव्यों को पूरा करते हुए उपासना में मन लगाने की बात कही है और ऐसा करने वाले लोगों को ही उन्होंने श्रेष्ठ बताया है। गुरु नानक ने सभी मनुष्यों को एक ही ईश्वर की संतान बताया। वह जात-पात एवं धर्म में विश्वास नहीं करते थे और यही कारण है कि हर धर्म के लोगों ने उनका अनुसरण किया। उनके बारे में कहा जाता है-नानक नाम चढ़ती कला, तेरे भाणे सरबत दा भला, ना हम हिंदू ना मुसलमान, पांच तत्व का पुतला नानक मेरा नाम।

गुरु नानक का समय आध्यात्मिक चेतना एवं सामाजिक चेतना का था, लेकिन गुरु नानक की वाणी में राजनीतिक चेतना एवं आर्थिक चेतना के बारे में भी जानकारी मिलती है। उनकी वाणी में आर्थिक चेतना की खूब झलक मिलती है। उन्होंने संदेश दिया कि मेहनत करके अपनी आर्थिक आवश्यकताएं पूरी करनी चाहिए एवं धन संचय नहीं करना चाहिए-हक पराया नानका, उस सुअर उस गाय। उनके अनुसार दूसरों के हक पर डाका डालना मुसलमानों के लिए सुअर एवं हिंदुओं के लिए गाय मारने के बराबर है।

गुरु नानक के बाद के सभी नौ गुरुओं ने सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब की रचना में नानक शब्द का खूब प्रयोग किया है। इसी कारण सिखों के दूसरे गुरु, गुरु अंगद को द्वितीय नानक भी कहा जाता है। ईश्वर का गुणगान करने और जीवन में सत्य का पालन करने को ही नानक ने ईश्वर की अनुभूति बताया। गुरु नानक ने सामान्य हिंदू परंपराओं का पालन नहीं किया हालांकि उनके माता-पिता हिंदू थे। उनके पिता का नाम कल्याण दास मेहता और माता का नाम तृप्ता था। लेकिन उन्होंने जनेऊ पहनने से इनकार कर दिया। गुरु नानक की शादी बटाला के सुलखनी से हुई और उनसे दो बच्चे हुए श्रीचंद एवं लक्ष्मी दास।

गुरुजी के बहनोई ने उन्हें एक सरकारी गोदाम में प्रबंधक की नौकरी दिला दी। जब वह 28 साल के थे तो हर दिन की तरह एक वह सुबह नहाने एवं ध्यान करने के लिए नदी के किनारे गए। कहा जाता है कि वह तीन दिन तक नदी के अंदर ही रहे। जब वह फिर से प्रकट हुए तो सभी को लगा कि वह पूरी तरह बदल गए हैं। उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और उनके पास जो कुछ भी था, उसे गरीबों में बांट दिया। अपने बचपन के एक मुस्लिम दोस्त मरदाना के साथ उन्होंने शहर छोड़ दिया। उन्होंने सिख धर्म के लिए तीन विचारधाराएं दी थीं- नाम जपना [ईश्वर की भक्ति] किरत करना [मेहनत से कमाई एवं सच्चा जीवन व्यतीत करना] और वंड छकना [हर जरूरतमंद एवं गरीबों की सहायता करना]।

गुरु नानक ने चार चरणों में 25 सालों तक देश-विदेश का भ्रमण किया। पश्चिम में वह मक्का-मदीना तक गए, दक्षिण में उन्होंने श्रीलंका तक की यात्रा की, उत्तार में मानसरोवर [चीन] तक का भ्रमण किया जबकि पूर्व में असम, मेघालय व मिजोरम की सीमा पार करते हुए वह बर्मा की सीमा तक गए।
दैनिक जागरण से साभार

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