सस्त्र की भूमिका
एक बार एक सन्यासी किसी गाँव घुमने के लिए निकले | जब वे गाँव पहुचे तो उन्होंने गाँव वालो को उपदेश दिया और अंत में बोले की हम और हमारी पुरी सत्संग गण कल का भोजन करेंगे इसी गाँव में और इसकी ब्यवस्था गाँव वाले करने लगे |
संत महात्मा बहुत पहुचे हुए थे उनके अनेक अनुयाये है और वे साथ ही घुमने थे | दुसरे दिन गाँव वालो ने भोजन की ब्यवस्था करना प्रारम्भ कर दिया इधर संत और अनुयायी ध्यान की मुद्रा में बैठ गए | जब भोजन का समय हुआ तो संत ने अपने अनुयायी से कहा जरा गाँव घूम करके आओ और देखो की भोजन तैयार हो गया क्या? उधर थोडी देर थी उधर जब वे लौटे तो संत सो गए थे क्युकी काफी देर हो गई थी जब संत जागे तो उन्हें बताया गया की भोजन में अभी विलंब है धीरे धीरे समय काफी हो गया था और उनके अनुयायीयो से रहा नही गया फ़िर उन्होंने संत से पूछा की क्या हम उनके घर तोड़ दे क्युकी गाँव वालो ने आपका अपमान किया है संत नींद में होने कर कारन कुछ नही बोले और उनका सर थोड़ा सा हिल गया | और सभी घर तोड़ने के लिए गाँव की और चले गए जब गाँव वालो ने पूछा की आप ऐसा क्यों कर रहे है तो उनलोगों ने गाँव वालो को मारा और पीटा और बोले हमलोग ऐसा संत के कहने पर कर रहे है |
इस कहानी का आशय यह नही था की भोजन की वजह से घर तोडे जा रहे थे बल्कि वह विषय है की इसमे सस्त्र की भूमिका क्या है? उनके हाथ या लाठी या कुछ और यहाँ धयान देनी वाली बात यह है की संत का सर ही सस्त्र की भूमिका निभा रहा था क्यों की उनका सर एक प्रश्न पर हिल गया था तो हमें ये नही समझना चाहिए की सस्त्र सिर्फ़ गोलों और बन्दूक या तलवार चाकू ही होती है अपितु छोटी से छोटी चीज भी सस्त्र का काम कर सकती है |
1 टिप्पणियाँ:
vicharniye lekh
regards
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